श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं श्रृंगारिक रचना “बरसात की एक अधूरी कहानी”। कुछ अधूरी कहानियां कल्पनालोक में ही अच्छी लगती हैं। संभवतः इसे ही फेंटसी कहते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #4 ☆
☆ बरसात की एक अधूरी कहानी ☆
वो ढलती हुई सांझ
वो बढ़ती हुई रात
वो मूसलाधार वर्षा
वो गंभीर हालात
वो बस-स्टैंड का शेड
वो मेरी उससे भेंट
कितनी रोचक है
याद अब तक है
बारिश से बचने मैंने
स्टैंड तक दौड़ लगाई
वो भी भीगते भीगते आई
स्टैंड के दो कोनों में
दोनों थे खड़े
सोच रहे थे, बारिश रूकें
तो आगे बढ़ें
अचानक बिजली कड़की
चपल तड़िता नीचे लपकी
लाईट गुल हो गई
टाउनशिप अंधेरे में खो गई
मेघों के गर्जन से
कांप उठा आसमान
डरकर मुझसे लिपट गई
वो युवती अनजान
उसकी गर्म सांसे
मेरी सांसों से टकराई
मेरी नस-नस में
बिजली सी दौड़ आयी
उसके भीगे-भीगे बाल
बूंदों से तर-बतर गाल
घबराई सी आंखें
होंठ संतरे की दो फांके
कसते ही जा रहा था
उसके बांहों का बंधन
मेरे रोम-रोम में
हो रहा था कंपन
जब हमारे अंधेरों से
मिले अधर
हम दुनिया से
हो गये बेखबर
सारी कायनात झूम रहीं थी
वर्षा की बूंदें
दोनों को चूम रही थी
कि, अचानक लाईट आयी
वो छिटककर दूर हुई, घबराई
उसकी बोझिल पलकें
कांप रही थी
सांसों की गति से
वो हांफ रही थी
कि, उसकी बस आई
उसने दौड़ लगाई
बस में चढ़ते-चढ़ते
वो शरमाई
मुझे देख मुस्कुराई
बिना कुछ कहे ही
कातर, तिरछी नजरों से
सब कुछ कह गई
बरसात की इस
तूफानी रात में
फिर एक कहानी
अधूरी रह गई
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
मो 9425592588
12/07/2020
शुक्रिया, इस अधूरी कहानी के अधूरे पन में सम्मिलित होने के लिए