श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं एक अतिसुन्दर समसामयिक गीत “झूम -झूम जब सावन आए ….”। श्रवण मास हो और सावन के गीत न हों यह संभव ही नहीं है। लॉक डाउन एवं मन के द्वार में अद्भुत सामंजस्य बन पड़ा है। ह्रदय से लेकर प्रकृति का अतिसुन्दर चित्रण। इस सर्वोत्कृष्ट सावन के गीत के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 57 ☆
☆ झूम -झूम जब सावन आए …. ☆
झूम -झूम जब सावन आए,
मन प्रसन्न हो गुन- गुन गाए।
झूमे उपवन की हर डाली,
जीव- जन्तु जन-मन मुस्काए।
नभ में प्यारी लाली छाई
भोर घटा फिर घिर -घिर आई।
धरती पर मनहर सुंदरता ,
अंबर ने फिर यूँ बरसाई।
तरुवर को नव पात मिले हैं,
कली फूल बनकर मुस्काए।
कृषक खेत को हो मतवाले,
चले,स्वप्न अंतर् में पाले।
बैलों की घण्टी के स्वर भी,
लगते सबको बड़े निराले।
उछल; कूद करते सब बच्चे,
ज्यों खुशियों के नव पर पाए।
सनन -सनन चलती पुरवाई,
तन -मन लेता है अँगड़ाई।
ले नदिया का नीर हिलोरे,
बढ़ती है जल की गहराई।
मुदित हुआ गोरी का आँचल,
संग संग पुरवा लहराए।
सावन की है बात निराली ,
मोह रही मन ऋतु मतवाली ।
पिया -मिलन मधु सरगम छेड़े ,
चितवन हाला की ज्यों प्याली।
कर शृंगार सजी है धरती,
रूप निरख मन अति हरषाये।।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
सुंदर रचना