हेमन्त बावनकर
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। आज प्रस्तुत है एक कविता “जीवन – एक रियलिटी शो”। यह कविता रियलिटी शो अमूल स्टार वाइस ऑफ इण्डिया के विजेता स्व. इशमित सिंह की अकाल मृत्यु पर श्रद्धांजलि स्वरुप 2008 में लिखी थी जो आज भी प्रासंगिक लगती है। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिये और पसंद आये तो मित्रों से शेयर भी कीजियेगा । अच्छा लगेगा ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 22 ☆
☆ जीवन – एक रियलिटी शो ☆
जीवन
एक रियलिटी शो ही तो है।
हम आते हैं
जीवन के मंच पर।
कोशिश करते हैं
जीतने की।
अक्सर,
कुछेक आशावादी
जीत भी जाते हैं
और
ज्यादातर हार जाते हैं।
फिर कुछ हो जाते हैं –
निराशावादी
कुछ कर लेते है समझौता
समय से
परिस्थितियों से।
विजयी जीत को मान लेता है
परिश्रम का फल
और
शेष मान लेते है
अपनी नियति
अथवा
कर्मों का फल।
सब में है प्रतिभा
कुछ प्रदर्शित कर पाते हैं
कुछ नहीं कर पाते।
हमारे अपने
सदैव भेजते हैं
प्रार्थना के रूप में एस एम एस
ईश्वर को।
कभी-कभी हमारे अच्छे कर्म
बन जाते है एस एम एस
हमारे लिये।
जब कभी देखता हूँ
मंच पर
मंच का रियलिटी शो
तो लगता है कि
कुछ भी तो अन्तर नहीं है
मंच और जीवन में।
वैसे ही
जीतने की खुशी
और
खुशी के आँसू।
हारने का गम
और
दुख के आँसू।
संवेदनशील मंच
गलाकाट प्रतियोगिता।
किन्तु,
ऐसा क्यों होता है?
क्यों होता है
जीवन का रियलिटी शो
इस बिखरी हुई कविता की तरह ?
दुख के क्षण
खुशी के क्षणों से
लम्बे क्यों होते है?
अंधकार से पूर्व
प्रकाश क्यो होता है?
और
दीप के बुझने के पूर्व
लौ तेज क्यों हो जाती है?
और
शेष रह जाती हैं
स्मृतियां
बुझे हुए दीप के धुयें की तरह
जो
धीरे-धीरे हो जायेंगी विलीन
समय की गोद में।
© हेमन्त बावनकर, पुणे
28 जुलाई 2008
शानदार, अर्थपूर्ण रचना,
भाई बधाई
धन्यवाद एवं हार्दिक आभार