सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “वो लड़की”। यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है से उद्धृत है। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 44 ☆
फाइलों के ढेर के बीच
अचानक याद आ गयी मुझे वो लड़की
जो थी
कुछ शर्मीली सी,
कुछ डरी-डरी सी,
कुछ घबराई हुई;
जिसकी आँखों में
रंग भरे हज़ारों ख्वाब सजते थे
और जो सोचती थी
कि इतनी ऊंची होगी उसकी उड़ान एक दिन
कि वो भूल जायेगी डर और घबराहट…
जिसकी आँखों में रौशनी न हो
वो जिस तरह जिंदगी को टटोलता है,
कुछ उसी तरह वो भी
अपने ख़्वाबों को टटोलती-
कहाँ उसके पास कोई दौलत थी
इन ख़्वाबों के अलावा?
उड़ान तो बहुत ऊंची नहीं थी,
पर वो लड़की कतरा-कतरा इकठ्ठा करती हुई,
कुछ लड़ती हुई, कुछ जूझती हुई,
एक ऐसे मुकाम पर जरूर पहुँच गयी
जहां नहीं बसते अब
उसकी आँखों में डर और घबराहट!
अब जब भी मन हार मानने लगता है
और लगता है दर्द बसेरा बना लेगा मेरे आँगन में,
मैं फिर बन जाती हूँ वही छोटी लड़की
और फिर उड़ने लगती हूँ
ख़्वाबों के सहारे!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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अच्छी रचना