श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “तीन मुक्तक…”।)
☆ तन्मय साहित्य #203 ☆
☆ तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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[1]
अपेक्षायें…
अपेक्षाएँ ये
दुखों की खान हैं
अपेक्षाएँ
हवाई मिष्ठान्न हैं
बीज इसमें हैं
निराशा के छिपे,
छीन लेती ये
स्वयं का मान हैं।
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[2]
बँटे हुए हम लोग…
मजहब, धर्म-पंथ,
अगड़े,पिछड़े में बँटे हुए हम लोग
भिन्न-भिन्न जातियाँ,
एक दूजे से कटे हुए हम लोग
वोटों की विषभरी
राजनीति ने सब को अलग किया
कहाँ देश से प्रेम,
कुर्सियों से अब सटे हुए हम लोग।
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[3]
निष्कर्ष
है कहाँ सिद्धांत नीति, अब कहाँ आदर्श है
चल रहा है झूठ का ही, झूठ से संघर्ष है
ओढ़ सच का आवरण, है ध्येय केवल एक ही
बस हमीं हम ही रहें, यह एक ही निष्कर्ष है।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈