प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( हम गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी के हृदय से आभारी हैं जिन्होंने ई- अभिव्यक्ति के लिए साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य धारा के लिए हमारे आग्रह को स्वीकारा। अब हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी हृदयस्पर्शी रचना तुम. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 3 ☆
☆ तुम ☆
तुम्हारे संग जिये जो दिन भुलाये जा नहीं सकते
मगर मुश्किल तो ये है फिर से पाये जा नहीं सकते
कदम हर एक चलके साथ तुमने जो निभाया था
दुखी मन से किसी को वे बताये जा नहीं सकते
चले हम राह में जब धूप थी तपती दोपहरी थी
सहे लू के थपेडे जो गिनाये जा नही सकते
लगाये ध्यान पढते पुस्तके राते बिताई कई
दुखद किस्से परिश्रम के सुनाये जा नहीं सकते
तुम्हारे नेह के व्यवहार फिर फिर याद आते हैं
दुखाकुल मन से जो सबको बताये जा नही सकते
बसी हैं कई प्रंसगो की सजल यादें नयन मन में
चटक है चित्र ऐसे जो मिटाये जा नही सकते
मसोसे मन को सब यादें मै चुपचाप झेल लेता हूं
बिताई जिदंगी के दिन भुलाये जा नहीं सकते
अचानक छोड हम सबको तुम्हें जाने की क्या सूझी
जहॉ से जाने वाले फिर बुलाये जा नही सकते
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
दिल को छूने वाली रचना