श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक रचना “ सावन का मौसम”। कुछ अधूरी कहानियां कल्पनालोक में ही अच्छी लगती हैं। संभवतः इसे ही फेंटसी कहते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #5 ☆
☆ सावन का मौसम ☆
ये सावन का मौसम
ये ठंडी-ठंडी हवायें
चलो आज हम तुम
कहीं दूर घूम आयें
ये गुपचुप का ठेला
ये लोगों का मेला
ये गरमागरम चाट
खायें, एक दूसरे को खिलायें
गार्डन में देखो बच्चों की टोली
ऊधम मचाती बिंदास बोली
कूद कूदकर खेलें हैं होली
छींटो से खुदको कोई कैसे बचायें
ये दिलकश नज़ारा
ये जल की बहती धारा
ये बिखरी हुई बूंदें
ये धुंध में लिपटा किनारा
ये दृश्य तो आंखों से
दिल में उतर जायें
हरी भरी वसुंधरा
प्रणय गीत गायें
अंबर के मेघों को
मिलने बुलायें
प्रकृति का ये खेल देखो
दौड़कर घिर आई
काली घटाएं
चलो रिमझिम फुहारों में
हम तुम भी भींगें
हृदय पटल पर
प्रेम गीत लिखें
भीगा – भीगा तन-मन हों
भीगी हों सांसें
ऐसे सावन को भला
कोई कैसे भूल पाएं ?
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
मो 9425592588