सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  एक भावप्रवण लघुकथा    “कृतज्ञता ”। )

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 9 ☆

 

☆ कृतज्ञता ☆

 

लगभग अट्ठारह-उन्नीस साल का लड़का।  पीछे बैग टांगे अपने सफर पर था। शायद कहीं परीक्षा देने जा रहा था। एक लंबी यात्रा पर हम भी निकले थे। बड़े स्टेशन पर ट्रेन के रूकते ही सभी अपने अपने जरूरत का सामान पानी, नाश्ता, भोजन, चाय और किताबें लेने के लिए चल पड़े। किताब की दुकान पर किताब देख ही रहे थे कि वो लड़का भी आकर ‘प्रतियोगिता  दर्पण’ देखने लगा। दुकान वाले ने जोर की डांट लगाई “फिर आ गये चलो भगो!!!!”

ट्रेन छूटने की जल्दी और उसकी मासूमियत देख हमने कहा “चलो लेकर जाओ।“ उसकी ट्रेन चलने का संदेश दे रही थी। किताब हाथ में लेकर दूसरे हाथ की  मुट्ठी  में बन्द मुड़ा तुड़ा नोट फेंका और दौड कर ट्रेन पर चढ गया।

जाते समय उसके चेहरे पर जो संतुष्टि और क्रृतज्ञता के भाव थे। शायद वह हजारों रू दान करने से भी नहीं मिल पाते।

बाद में पता चला कि रू 35 कम पड़ रहे थे उस किताब को लेने के लिए ।

एक छोटा सा सहयोग; हो सकता है उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी बन गया हो।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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