श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं एक सार्थक लघुकथा “सीख की गाँठ”। वास्तव में सीख की गाँठ तो सौ टके की है ही, यह लघुकथा भी उतनी ही सौ टके की है। नवीन पीढ़ी को ऐसी ही कई गांठों की आवश्यकता है जो उचित समय पर बांधना ही सार्थक है। संभवतः सभी पीढ़ियां इस दौर से एक बार तो जरूर गुजरती हैं। इस सार्थक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 58 ☆
☆ लघुकथा – सीख की गाँठ ☆
एक भव्य शादी समारोह लगभग सभी पढ़े लिखे शिक्षित परिवार से लग रहे थे।
बिटिया जिसकी शादी हो रही थी ” सुरीली” । बाहर पढ़ने गई हुई थी। लालन पालन भी आज की आधुनिकता भरे वातावरण में हुआ था।
घर पर सभी मेहमान आए हुए थे और बिटिया के बाहर रहने के कारण सभी सुरीली को कुछ ना कुछ समझा रहे थे।
शायद इसलिए कि वह इन रीति-रिवाजों को नहीं जान रही है और घर से दूर अकेली स्वतंत्र हॉस्टल की जिंदगी में पली बढ़ी है। हॉस्टल की जिंदगी अलग होती है।
समय निकलता जा रहा था सभी रस्में एक के बाद एक होते जा रहे थे। सुरीली नाक चढ़ा मजबूरी है कहकर निपटाना समझ रही थी।
दादी जो कि सत्तर साल की थी। सब बातों को बड़े ध्यान से एक किनारे बैठ कर भापं रही थी क्योंकि कोई उन्हें पूछं भी नहीं रहा था और उनकी अपनी पांव की तकलीफ के कारण वह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।
कभी-कभी बीच-बीच में बेटा और पोता, बहू आ कर पूछ जाते कुछ चाहिए तो नहीं??? परंतु दादी लगातार नहीं कह… कर खुश हो जाती और कहती… तुम सब अपना काम करो। बस मुझे विदाई के समय सुरीली की ओढ़नी पर गांठ बांधनी है।
सभी को लगा कि विदाई में शायद दादी कुछ भारी-भरकम चीज देंगी। परंतु ऐसा कुछ भी नहीं था।
विवाह संपन्न हुआ और धीरे-धीरे विदाई का समय आया। पिताजी ने सुरीली से कहा… कि दादी का आशीर्वाद ले लो सुरीली ने थोड़ा मुंह बना लिया जिसे दादी देख रही थी। सुरीली निपटाना है कहकर… आगे बढ़ी और दादी के पास गई।
दादी ने बड़े प्यार से सुरीली और दामाद के सिर पर हाथ रखा और ओढ़नी के पल्लू पर एक गांठ बांधते हुए बोली… मैं जान रही हूं तुम्हें संयुक्त परिवार की आदत नहीं है और जहां शादी होकर जा रही हो संयुक्त परिवार में जा रही हो।
यह गांठ मैं तुम्हें बांध रही हूं घर से निकलते समय बड़ों से पूछ कर जाना और उनके पूछने से पहले घर के अंदर आ जाना बस इतना सा ही कहना है। सुरीली की आंखें नम हो गई। दादी को कसकर गले लगा लिया और हां में सिर हिला दिया।
दादी की ‘सीख गांठ’ के लिए सभी ने तालियों से स्वागत किया। और अपनी पुरानी काया के साथ अनुभव को अपनी नातिन को बांटते हुए दादी फूली नहीं समा रही थी। सभी की आंखें चमक उठी। सभी ने कहा दादी ने सौ टके की बात कही। दादी की गांठ का सभी ने लोहा माना।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
अच्छी रचना