(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का आलेख देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व…. श्री अमरेंद्र नारायण। इस अत्यंत सार्थक एवं प्रेरक आलेख के लिए श्री विवेक जी का हार्दिक आभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 65 ☆
☆ देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व…. श्री अमरेंद्र नारायण ☆
श्री अमरेंद्र नारायण जी से मेरे आत्मीयता के कई कई सूत्र हैं. एक इंजीनियर, एक साहित्यकार, एक कवि, एक रचनाकार, एक पाठक, राष्ट्र भाव से ओत प्रोत मन वाले, देश की एकता और अखण्डता के लिये समर्पित आयोजनो के समन्वयक और सबसे ऊपर एक सहृदय सदाशयी इंसान के रूप में वे मुझे मेरे अग्रज से अपने लगते हैं.
श्री अमरेंद्र नारायण जी की पुस्तक को अमेजन में निम्न लिंक पर उपलब्ध है
स्वतंत्र भारत के एक नक्शे के शिल्पकार लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के अप्रतिम योगदान पर उन्होंने एकता और शक्ति उपन्यास लिखा है। इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया में अमरेंद्र जी ने गुजरात में सरदार पटेल से संबंधित अनेकानेक स्थलों का पर्यटन कई कई दिनो तक किया है. स्वयं को तत्कालीन परिवेश में गहराई तक उतारा है और फिर डूबकर लिखा है.इसीलिये उपन्यास सरदार पटेल के जीवन के अनेक अनजान पहलुओं को उजागर करता है। रास ग्राम के एक सामान्य कृषक परिवार को केन्द्र में रख कर कहानी का ताना बाना बुना गया है।सरदार पटेल के महान व्यक्तित्व से वे अंतर्मन से प्रभावित हैं. सरदार पटेल के सिद्धांतो को नई पीढ़ी में अधिरोपित करने के लिये मैंने उनके साथ मिलकर अनेक शालाओ, महाविद्यालयों, व कई संस्थाओ में एकता व शक्ति नाम से विभिन्न साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजन किये है. देश की आजादी के साथ सरदार पटेल को कांग्रेस जनो का बहुमत से समर्थन होते हुये भी उन्होने महात्मा गांधी के इशारे पर प्रधानमंत्री की कुर्सी सहजता से पंडित नेहरू को दे दी थी. ऐसे त्याग के उदाहरण आज की राजनीति में कपोल कल्पना की तरह लगते हैं.
समय के साथ यदि तथ्यो को नई पीढ़ी के सम्मुख दोहराया न जावे तो विस्मरण स्वाभाविक होता है, आज की पीढ़ी को सरदार के जीवन के संघर्ष से परिचित करवाना इसलिये भी आवश्यक है, जिससे देश प्रेम व राष्ट्रीय एकता हमारे चरित्र में व्याप्त रह सके इस दृष्टि से यह उपन्यास अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता दिखता है.
अमरेन्द्र नारायण जी पेशे से टेलीकाम इंजीनियर हैं, उन्होने अपने सेवाकाल का बड़ा समय विदेश में बिताया है, पर वे मन से विशुद्ध भारतीय हैं, वे जहां भी रहे हैं उन्होने हिन्दी की सेवा के लिये सतत काम किया है तथा देश भक्ति का परिचय दिया है.
अमरेंद्र जी की कवितायें भी उनकी ऐसी ही भावनाओ को प्रतिबिम्बित करती हैं . उनकी पंक्तियां उधृत करना चाहता हूं
वे वसुधैव कुटुम्बकम के अनुरूप प्रकृति पर सबका समान अधिकार प्रतिपादित करते हुये लिखते है
वसुधा की कोख उदारमयी
वात्सल्य नेह और प्यार मयी
अन्नपूर्णा सारे जग के लिये
हर प्राणी और हर घर के लिये
है सबकी, है सबकी
इसी तरह कोरोना के वर्तमान वैश्विक संकट के समय उनकी कलम लिखती है
जाने कितनी बार विपदा ने चुनौती दी मनुज को
जाने कितनी बार उसकी शक्ति को झकझोर डाला
जाने कितनी बार नर को नाश की धमकी दिखाई
जाने कितनी बार उसको कष्ट में घनघोर डाला
पर मनुज भी तो मनुज है, उठ खरा होता है कहता
है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है
बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है
वर्तमान संदर्भ में अमरेंद्र जी की ये पंक्तियां नये उत्साह और स्फूर्ति का संचरण करती हैं. उनके असाधारण प्रेमिल व्यक्तित्व का साथ मुझे बड़ी सहजता से मिलता है यह मेरे लिये गौरव का विषय है.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
अच्छी रचना