श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं विचारणीय रचना “सफलता सिर चढ़कर बोलती ही नहीं चलती भी है …..।” वास्तव में दलबदल का कोई प्रावधान ही नहीं होना चाहिए। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 28☆
☆ सफलता सिर चढ़कर बोलती ही नहीं चलती भी है ….. ☆
कहते हैं कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। जितने बार असफल हो उतनी बार उठो और फिर से प्रयास शुरू कर दो। जब परिश्रम का श्रम सिर चढ़कर बोलने लगता है, तो ईश्वर भी आपकी मदद करने हेतु हाजिर हो जाते हैं। ये बात केवल साधारण मनुष्यों तक लागू नहीं होती है। इसी विचारधारा को अपनी प्रेरणा मानते हुए जनप्रतिनिधि भी लगातार श्रेष्ठ आचरण करते हुए दिख रहे हैं। वे सफल होने के लिए दलबदल से भी नहीं हिचकते। चुनाव भले ही किसी भी दल से जीता हो लेकिन वफ़ादारी कुर्सी के प्रति ही रखते हैं। आख़िर कुर्सी भी तो कोई चीज होती है। सोचिए यदि जनता की सेवा करनी है, तो खड़े- खड़े कब तक केवल विपक्ष की तरह अपनी आवाज उठाते रहेंगे। सो अपना शक्ति प्रदर्शन दिखाते हुए अपने समर्थकों को लेकर स्वतंत्र होने की घोषणा कर ही देते हैं।
इधर दूसरी ओर लोग भी इस ताक में बैठे रहते हैं कि कोई स्वतंत्र पंछी दिखे तो उसे पिंजरे में कैद करें। मानवता के पुजारी दिनभर इसी जुगत में अपना समय पास करते- रहते हैं। पहले तो बहुमत प्राप्त दल सरकार बनाता तो दूसरा आसानी से स्वयं विपक्षी का फर्ज निभाने लगता था। अब समय बदल रहा है, पाँच साल तक सब्र रखना कठिन होता जा रहा है, सो सफलता के तत्वों से प्रेरणा ले विपक्षी दल भी सत्तापक्ष पर सेंध लगा ही देता है। पहली बार में असफलता ही हाथ लगती है, फिर दुबारा गलतियाँ कहाँ रह गयीं, किसने गद्दारी की ये सब देख कर पुनः योजना बनाई जाती है। इस बार विश्वास पात्रों को ही इसमें शामिल करते हैं, फिर भी शत प्रतिशत सफलता नहीं मिल पाती। अब तो पार्टी के केंद्रीय मुखिया को जोर लगाना पड़ता है तथा सारा कार्य अपने हाथों में लेते हुए परीक्षा का परिणाम 100 % कर देते हैं और फिर राज्य के विपक्षी प्रमुख को बुला कर उसे कुर्सी सौंप सत्ता पक्ष का ताज पहना कर ही अपनी जीत का जश्न मनाते हैं।
अरे भाई जनता का कार्य केवल वोट देना है, कुर्सी पर कौन कितनी देर तक टिकेगा इससे न उन्हें मतलब है न होना चाहिए। ये तय है कि चुनाव 5 साल में ही एक बार होगा, क्योंकि खर्च बहुत लगता है, और ये सब जनता का ही तो है ; सो मूक रहकर सब तमाशा देखती रहती है। किसी भी दल को बहुमत से जिता कर भले ही भेज दो पर कुर्सी में वही टिकेगा जो सारे विधयकों या सांसदों को संतुष्ट करने का मंत्र जानता हो।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020
मो. 7024285788, [email protected]
इस रचना को लाइक करने हेतु आप सभी को धन्यवाद
अच्छी रचना
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद