श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा  “गुरुदक्षिणा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  # 58 ☆

☆ लघुकथा – गुरुदक्षिणा ☆

” आज समझ लो कि उपथानेदार साहब तो गए काम से ,” एक सिपाही ने कहा तो दूसरा बोला,” ये रामसिंह है ही ऐसा आदमी. हर किसी को लताड़ देता है. इसे तो सस्पैंड होना ही चाहिए.”

” देख लो इस नए एसपी को, कितनी कमियां बता रहा है,” पहले सिपाही ने कहा तो दूसरा बोला,” इस एसपी को पता है कि कहां क्या क्या कमियां है,” दूसरे ने विजयभाव से हंस कर कहा.

तभी दलबल के साथ एसपी साहब थानेदार के कमरे में गए. रामसिंह ने अपनी स्थिति में तैयार हुए. झट से अपने अधिकारी के साथ एसपी साहब को सैल्यूट जड़ दिया.

जवाब में सैल्यूट देते हुए एसपी साहब उपथानेदार के चरण स्पर्श करने को झूके. तब उन्हों ने झट से कहा, ” अरे साहब ! यह क्या करते हैं ? मैं तो आप का मातहत हूं.” उन के मुंह से भय और आश्चर्य से शब्द निकल नहीं पा रहे थे .

” जी गुरूजी !” एसपी साहब ने कहा, ” मैं सिपाही था तब यदि आप ने इतना भयंकर तरीके से मुझे न लताड़ा होता तो उस वक्त मेरे तनमन में आग नहीं लगतीऔर मैं आज एसपी नहीं होता. इस मायने में आप मेरे गुरू हुए,” कहने के साथ एसपी साहब तेजी से अपने दलबल के साथ चल दिए, ” सभी सुन लों. मैं ने जो जो कमियां बताई हैं उसे पंद्रह दिन में ठीक कर ​लीजिएगा अन्यथा….”

तेजी से आती हुई इस आवाज़ को उपथानेदार साहब अन्य सिपाहियों के साथ जड़वत खड़े सब सुनते रहे. उन्हें समझ में नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है ?

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

२७/१२/२०१९

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना