श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं एक अतिसुन्दर एवं सार्थक कविता “डोल रही है सारी धरती ”। एक विचारणीय कविता। इस सार्थक कविता के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 59 ☆
☆ डोल रही है सारी धरती ☆
आज यशोदा के कान्हा को
फिर से बहुत पुकारा है
डोल रही है सारी धरती
अब तुम्हारा सहारा है
मचा हुआ जीवन कोलाहल
छलकता विष का प्याला है
धू-धू करती आग उगलती
हर रिश्तो में ज्वाला है
डोल रहीं हैं सारी धरती
अब तुम्हारा सहारा हैं
झर-झर बहते अश्रु धार
नैनो के बीच समाया है
थिरक थिरक मधुमास लिए
गुलशन बना मधुशाला है
डोल रहीं हैं सारी धरती
अब तुम्हारा सहारा हैं
कौन श्रृंगार करे दर्पण से
हर चेहरा मुखौटा है
जीवन में उन्माद समाया
सांझ यौवन नशीला है
डोल रही हैं सारी धरती
अब तुम्हारा सहारा है
न दिया की बाती कोई
अब ना भेंट भलाई है
बना हुआ कैसा उलझन
शोर मचाती तरुणाई है
डोल रही हैं सारी धरती
अब तुम्हारा सहारा हैं
कटुता समाए मन में
दिखाता छल छलावा है
लगाए बातों की मक्खन
पीठ में खंजर चुभाता है
डोल रही है सारी धरती
अब तुम्हारा सहारा है
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
अच्छी रचना