डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तंत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं। आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं। अब आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख पक्ष या विपक्ष नहीं, राष्ट्र हो सर्वोपरि. )
☆ किसलय की कलम से # 12 ☆
☆ पक्ष या विपक्ष नहीं, राष्ट्र हो सर्वोपरि ☆
मित्राणि धन धान्यानि, प्रजानां सम्मतानिव।
जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी
जनसमुदाय में मित्र, धन, धान्य आदि का बहुत सम्मान है, लेकिन माँ एवं मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी उच्च है। इसी तरह श्री राम लंका विजय के उपरांत लक्ष्मण जी के पूछने पर कहते हैं कि लक्ष्मण! लंका के स्वर्णनिर्मित होने के पश्चात भी मेरी इस में कोई रुचि नहीं है क्योंकि जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा होता है। हमारी मातृभूमि अयोध्या तो तीनों लोकों से कहीं अधिक सुंदर है। भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं-
“ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं’
महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, मंगल पांडे, आजाद, भगत, सुखदेव जैसे नाम मातृभूमि अर्थात राष्ट्रप्रेम के पर्याय बन चुके हैं। ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक अमर कविता के रचयिता राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी सहित असंख्य कवियों की लेखनी ने भी राष्ट्र को सर्वोच्च माना है।
संपूर्ण विश्व के जनसमुदाय की प्रतिबद्धता अपने-अपने देश के प्रति होती ही है। हम इजरायल की ही बात करें तो देशहित व देश की सुरक्षा की दृष्टि से वहाँ के सभी महिला-पुरुषों को आर्मी का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होता है। हमारी सेना के जवानों का जज़्बा भी बेमिसाल है। प्रत्येक जवान देश के लिए अपनी जान तक न्योछावर करने से पीछे नहीं हटता। राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानने वाले जवानों ने जो हमारे दिलों में विश्वास स्थापित किया है, उसका ही परिणाम है कि हम और हमारा देश चैन की नींद सो पाता है। युगों-युगों से वर्तमान तक ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। इजराइल जैसे देश तथा भारतीय सेना के जवानों की बात छोड़ दें तो अब न राम, कृष्ण का युग है, न राणा-लक्ष्मी-शिवा का समय और न ही माखनलाल चतुर्वेदी जैसे कवियों का जमाना। जनमानस में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और गांधी जयंती पर ही देश भक्ति और देश प्रेम की बातें होती हैं और लाउडस्पीकरों पर देश भक्ति के गाने कार्यक्रम आयोजक बजवाते हैं। आज कब शहीदों के बलिदान दिवस और जयन्तियाँ निकल जाती हैं, अधिकांश लोगों को पता ही नहीं चलता। शालाओं में भी औपचारिकताएँ ही बची हैं। जब विद्यार्थियों में ही राष्ट्रप्रेम के बीज नहीं बोये जाएँगे तब उनके दिलों में राष्ट्रभक्ति या राष्ट्रप्रेम अंकुरित कैसे होगी। हम में से कोई अपनी संतान को नेता बनाना चाहता है, कोई इंजीनियर और कोई डॉक्टर। ज्यादा हुआ तो संतानों के लिए बड़े से उद्योग शुरू करा दिए जाते हैं। बात राष्ट्रभक्ति तक पहुँच ही नहीं पाती। वैसे आज राजनीति सबसे बड़ा व्यवसाय बन गया है। यदि आपके परिवार का कोई सदस्य अथवा आपका कोई आका राजनीति में है तो सब परेशानियों का हल चुटकी में हो जाता है। जब परेशानियाँ ही नहीं होंगी तो इंजीनियरिंग, डॉक्टरी और उद्योग निर्बाध तो चलेंगे ही। उद्योग-धंधे फलेंगे-फूलेंगे ही। सामान्य इंसान तन-मन-धन लगाने के बाद भी प्रायः सफल नहीं हो पाता और यदि सफल भी होता है तो उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है, लेकिन नेताओं का तरह-तरह से बचा हुआ धन उन्हें बड़े से और बड़ा बना देता है। एक बार फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतारते भारत आए। भारतीय संसद को संबोधित करने के उपरांत उन्होंने कुछ सांसदों से पूछा कि आप क्या करते हैं? आपकी आय के क्या साधन है? उन्हें जब बताया गया कि राजनीति में रहते हुए भत्ते, वेतन और पेंशन ही उनकी आय के साधन हैं तब उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह पैसा तो जनता से टैक्स के रूप में लिया जाता है जो इन्हें यूँ ही दिया जा रहा है, जबकि उनके द्वारा बताया गया कि उनकी आय का प्रमुख साधन खेती है, वह सुबह 5:00 बजे से 9:00 बजे तक खेतों पर रहते हैं। उसके पश्चात 10:00 से देश के राष्ट्रपति वाले कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं। और ये हैं हमारे देश के नेताओं के आय के स्रोत, मानसिकता और उनकी दिनचर्या, जिनसे प्रायः सभी पतिचित हैं। कुछेक सांसद, विधायक मंत्री व जनप्रतिनिधियों को देशप्रेम, देशप्रगति व जनसेवा के सही मायने भी अच्छे से ज्ञात नहीं होंगे। राष्ट्रभक्ति व राष्ट्रधर्म का निर्वहन करना उनकी प्राथमिकता होती ही नहीं। शासकीय नीतियों और अपने शीर्षस्थ नेताओं का समर्थन करना ही ये सबसे अच्छी राजनीति मानते हैं। यदि सारे नेताओं एवं सभी राजनीतिक दलों की प्रतिबद्धता देशहित को सर्वोपरि मानने की होती तो आज पाकिस्तान जब तब न अकड़ता। चीन हमारे ऊपर गिद्ध जैसा न मंडराता और न ही दोष देता। बांग्लादेश और नेपाल जैसे छोटे देश हमारे विरुद्ध न जाते। सबको पता है बंगाल, कर्नाटक और केरल की राजनीति। सब जानते हैं कट्टरपंथियों तथा वामपंथियों के कार्यकलापों को। यह भी सही है कि आज की सरकारें भी शतप्रतिशत सही नहीं होतीं। ये कोई लुकी-छिपी बातें नहीं हैं। सबकी अपनी ढपली और अपना राग है, जिसका फायदा हमेशा विदेशियों एवं हमारे दुश्मनों ने उठाया है और आज भी उठा रहे हैं। कैसी विडंबना है कि हम स्वदेशी उत्पादों की उपेक्षा और विदेशी उत्पादों का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। वहीं हमने पढ़ा है कि जापानियों ने एक बार अपने देशी सेवफलों से मीठे, स्वादिष्ट और सस्ते अमेरिकन सेवफलों को केवल इसलिए नहीं खरीदा कि वे विदेशी थे। आज उनके देशप्रेम ने जापान को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया। इसी तरह राष्ट्रहित में किये जाने वाले कार्य और योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए सभी के द्वारा सरकार को सहयोग किया गया होता तो आज ये हालात नहीं बनते। अधिकृत कश्मीर का मसला नहीं रहता, न ही चीन द्वारा हमारी जमीन पर कब्जे की बात होती। आज ऐसी परिस्थितियाँ हैं कि चीन, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश व नेपाल जैसे पड़ोसियों के साथ हमारे दोस्ताना संबंध नहीं हैं। आखिर ऐसी क्या कमी है इस देश में, इस देश की सरकार में और विपक्षी दलों में, जो हमारे पड़ोसी देश हम से ही असहमत हैं। देश की सीमाओं पर शांति नहीं है, तनाव बना रहता है। कुछ शीर्षस्थ नेता हैं कुछ विपक्ष के लोग भी हैं जिन्हें देश की चिंता है, अमन-शांति की फिक्र है परंतु आग में घी डालने वालों की कमी नहीं है। काश! सभी भारतवासियों एवं जनप्रतियों में राष्ट्र के प्रति समर्पणभाव और आपसी एकता की सर्वोच्च प्रतिबद्धता होती तो विश्व का कोई भी देश हमारी ओर आँख उठाने का दुस्साहस नहीं करता। आज ऐसे उन सभी लोगों को समझना होगा कि उनकी छोटी अथवा बड़ी स्वार्थलिप्तता, देश के प्रति नकारात्मक सोच अथवा भ्रामक वक्तव्य हमारे देश को कमजोर बना सकते हैं। हमारे देश की एकता के लिए बाधक बन सकते हैं। वर्तमान में जब कोरोना जैसी महामारी से विश्व में त्राहि-त्राहि मची हुई है। हम कोई भी कार्य सामान्य रूप से नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में चीन का आँखें तरेरना, पाकिस्तान की ओछी हरकतें और अब नेपाल द्वारा भारत विरोधी रवैया अपनाना हमारे लिए कठिन चुनौती बन गई है। आज समय है देशहित को सर्वोपरि सिद्ध करने का। हमें अपनी एकता दिखाने का। राजनीति तो जीवन भर की जा सकती है, लेकिन देश पर नजर गड़ाने वालों को आज करारा जवाब देना अत्यावश्यक हो गया है।
आज देश के कोई भी राजनीतिक दल हों, पक्ष अथवा विपक्ष हो, किसी भी विचारधारा के अनुगामी ही क्यों न हों, हमें असत्य व भ्रामक वक्तव्य तथा प्रचार से बचना होगा। हमें विश्व को बताना होगा कि हम भारतवासियों के लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि है। इन सभी बातों को हवा-हवाई कतई नहीं लिया जाना चाहिए। अब यह सुनिश्चित करना हम, आप व देश के कर्णधारों का दायित्व बन गया है कि भले ही आपस में हमारे मतभेद हों लेकिन राष्ट्र की आन पर बगैर शर्त हम एक हैं। वर्तमान में आज यह महती आवश्यकता है कि हम पक्ष और विपक्ष के सभी एक सौ चालीस करोड़ देशवासी राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर देशप्रेम की ज्योति जलाने का संकल्प लें।
© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
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आदरणीय
बावनकर जी
ई-अभिव्यक्ति में अपने आलेख प्रकाशन से स्वयं को गौतवान्वित अनुभव करता हूँ।
आभार आपका।
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बावनकर जी
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आभार आपका।