सौ. सुजाता काळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 43 ☆
बात पते की आज कह रहे
तुम घर वापस जाओ ना!
छह महिनों से यहाँ टिके हो
कोरोना अपने घर जाओ ना!
बहुत दिनों से टिके हुए हो
काफी मिट्टी खोद चुके हो
आर्थिक सीमाओं की चट्टान
गरदन मरोड़ के तोड़ चुके हो।
कितना दुष्कर्म कर रहे हो
दुर्बल को ही छल रहे हो।
चुपके से गलियों में उसकी
बेवजह क्यों घूम रहे हो?
कैसा नरसंहार मचा रखा है?
उम्र का कोई लिहाज नहीं है
बुढ़ा- बच्चा, जवान न देखो
गर्भवती को ना छोड़ रहे हो।
गरीब हमारी जनता सारी
पाई पाई को मोहताज हुई है
सबके पेट में लात मारकर
छाती पर तुम मूँग दल रहे हो।
क्या तुम्हारी धरती तुमको
क्यों पुकार नहीं रहीं है?
जहाँ से आए हो तुम अब
वापस घर जाओ ना…
कोरोना अपने घर जाओ ना!
© सुजाता काळे
7/7/20
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अच्छी रचना