श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
लॉकडाउन आरम्भ हुआ। पहले लगा, थोड़े समय की बात है। फिर पूर्णबंदी की अवधि बढ़ती गई। अनेकजन को लगता था कि यूँ समय कैसे कटेगा?
समय बीतता गया। कभी विचार किया कि इस समय को बिताने(!) में आभासी दुनिया का कितना बड़ा हाथ रहा! वॉट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टेलिग्राम पर कितना समय बीता। ब्लॉगिंग, मेलिंग और ऑनलाइन मीटिंग एपस् ने कितना समय लिया। फिर आभासी दुनिया से ऊब हो चली। जान लिया कि हरेक स्वमग्न है यहाँ। आभासी की खोखली वास्तविकता समझ आने लगी।
विडंबना यह है कि जिसे वास्तविक दुनिया समझते हो, वह भी ऐसी ही आभासी है।
सफलता, पद, प्रतिष्ठा, धन, संपदा, लाभ पाने की इच्छा, यही सब छिपा है इस आभास में भी। तुमसे थोड़ी मात्रा में भी लाभ मिल सकने की संभावना बनती है तो जमावड़ा है तुम्हारे इर्द-गिर्द। …और जमावड़े की आलोचना क्यों करते हो, ध्यान से देखो, तुम भी वहीं डटे हो जहाँ से कुछ पा सकते हो। तुम अलग नहीं हो। वह अलग नहीं है। मैं अलग नहीं हूँ। सारे के सारे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे। सारे के सारे स्वमग्न!
मानसिक व्याधि है स्वमग्नता। है कोई कुछ नहीं पर सोचता है कि वह न हो तो जगत का क्या हो!
चलो प्रयोग करें। एक शब्द चलन में है इन दिनों,’क्वारंटीन’.., एकांतवास। कुछ दिन वास्तविक अर्थ में सेल्फ क्वारंटीन करो। विचार करो कि ऐसे कितने साथी हैं जो तन, मन, धन तीनों को खोकर भी तुम्हारा साथ दे सकेंगे? सिक्के को उलटकर अपना विश्लेषण भी इसी कसौटी पर कर लेना। सारे रिश्तों की पोल खुल जाएगी।
स्वमग्नता से बाहर आने का मार्ग दिखाया है आपदा ने। अभी भी समय है चेतने का। अपने यथार्थ को जानने-समझने का। आभासी से वास्तविक में लौटने का।
जगत में ऐसे रहो जैसे कमल के पत्ते पर जल की बूँद।
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
इस सेल्फ क्वारंटीन में ही हम स्वयं को जान सकते हैं।बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ??????????????
अच्छी रचना