श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है “एक बुन्देली रचना”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 50☆
☆ एक बुन्देली रचना ☆
आपहुं आप मुंह फुला ऱए काय के लाने
बिन बुलाए ही घर खों आ ऱए काय के लाने
कभहुँ बात समझ कछु आतई नइयां
जबरन हम खों चाटे जा ऱए काय के लाने
नेता के संग बहुतई घूम घूम खें
उसई सब खों धमका ऱए काय के लाने
कहवे खों तो झट बुरो मान रए दद्दा
मास्क मुँह में नहीं लगा रए काय के लाने
कोरोना में लूट मची अस्पतालन की
लाखों खों खर्चा बता रए काय के लाने
कोरोना की आड़ में जबरन डर फैला खें
जइ बहाने खूब कमा रए काय के लाने
ढ़ीली कर दी सरकारों ने लगाम अब तो
जन-जन खों “संतोष” भी नइयां काय के लाने
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
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