श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक रचना  “तर्पण”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #7 ☆ 

☆ तर्पण ☆ 

पति-पत्नी ने पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन प्रण किया

दोनों ने सामूहिक निर्णय लिया

कि पुरे विधि-विधान से

पूजा करेंगे

पूर्वजों को अन्न खिलाने

के बाद ही

मुंह में अन्न का दाना धरेंगे।

स्वर्गीय माता पिता के

छाया चित्र को माल्यार्पण किया

पंडित से पूजा करवाकर

उसे दान दिया

पंच पकवानो भरी थाली

रखी छत पर जाकर

आसमान से दो काले

कौए बैठे आकर

कौओं ने अन्न के दाने को

नहीं छुआ।

दोनों पति-पत्नी

अन्न ग्रहण करने की

मांगने लगे दुआ ।

लंबे समय के बाद भी स्थिती में

कुछ परिवर्तन ना हुआ।

कौए अड़े हुए थे

उन्होंने अन्न को नहीं छुआ।

पत्नी भूख से व्याकुल होकर बोली-

जीते जी तुम्हारे माता-पिता ने

मुझे चैन से जीने नहीं दिया

अब मरकर भी तड़पा रहे हैं।

सुबह से मैंने पानी तक नहीं पिया

तभी कौए ने मुंह खोला

कांव कांव करते हुए बोला

हम जीते जी

अन्न के दाने दाने को तरसे हैं

मरने बाद हम पर

यह पंच पकवान क्यों बरसे हैं।

दोनों आकाश में उड़ते उड़ते बोले

बेटा, जीते जी हमको कभी

तृप्ति नहीं मिली है

तो अब क्या मिलेगी ?

तुम अब कितना भी प्रपंच करलो

अब तुम्हारे हाथों

हमें कभी मुक्ति नहीं मिलेगी ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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