डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं प्रदत्त शब्दों पर “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 60 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
तितली
रंग बिरंगी तितलियां,
विश्व सुंदरी रूप।
कहीं छिटकती चांदनी,
कहीं छिटकती धूप।।
जंगल
जल का माध्यम हरे वन,
जल से वन संपन्न ।
जल जंगल से हीन हो,
मृत्यु देखें आसन्न।।
श्राप
कोरोना की मार ही,
आज बना है श्राप।
सबके सिर पर नाचता,
बना सभी का बाप।।
बारूद
बातों के बारूद पर,
चलें घिनौनी चाल।
जीवन है संघर्ष का,
करे बुरा जो हाल।।
धूप
शरमाता है देखकर,
दर्पण उजला रूप।
तेरी शोभा बढ़ रही,
पड़े मखमली धूप।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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