श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
बालकनी से देख रहा हूँ कि सड़क पार खड़े, हरी पत्तियों से लकदक पेड़ पर कुछ पीली पत्तियाँ भी हैं। इस पीलेपन से हरे की आभा में उठाव आ गया है, पेड़ की छवि में समग्रता का भाव आ गया है।
रंगसिद्धांत के अनुसार नीला और पीला मिलकर बनता है हरा..। वनस्पतिशास्त्र बताता है कि हरा रंग अमूनन युवा और युवतर पत्तियों का होता है। पकी हुई पत्तियों का रंग सामान्यत: पीला होता है। नवजात पत्तियों के हरेपन में पीले की मात्रा अधिक होती है।
पीले और हरे से बना दृश्य मोहक है। परिवार में युवा और बुजुर्ग की रंगछटा भी इसी भूमिका की वाहक होती है। एक के बिना दूसरे की आभा फीकी पड़ने लगती है। अतीत के बिना वर्तमान शोभता नहीं और भविष्य तो होता ही नहीं। नवजात हरे में अधिक पीलापन बचपन और बुढ़ापा के बीच अनन्य सूत्र दर्शाता है।
प्रकृति पग-पग पर जीवन के सूत्र पढ़ाती है। हम देखते तो हैं पर बाँचते नहीं। जो प्रकृति के सूत्र बाँच सका, विश्वास करना वही अपने समय का सबसे बड़ा साक्षर और साधक भी हुआ।
© संजय भारद्वाज
अपराह्न 3:26, 12.9.20
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत सुंदर। बहुत बहुत बधाई।