श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना  “परिंदे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #8 ☆ 

☆ परिंदे ☆ 

गर्मी के दिनों में

सुबह सुबह का अखबार

विज्ञापनों की भरमार

पत्नी के हाथ

चाय की चुस्कियां

खबरों की सुर्खियां

मजे ले लेकर पढ़ता हूं

जब पत्नी कहां है –

देखने आगें बढता हूं

वो गॅलरी में

चिड़ियां और उसके बच्चों को

दाने खिलाती रहती है

अलग से कटोरों मेंं

साफ पानी रख

उन्हें पिलाती रहती है

उनके घोंसलों को

साफ करती है

रूई, पैरा उसमें भरती है

अपना कार्य करती है यतन से

बड़े ही जिम्मेदारी, जतन से

मैंने एक दिन पूछा,’ भाग्यवान !

रूत बदलते ही यह उड़ जायेंगे

फिर यहां लौटकर नहीं आयेंगे ?

पत्नी मुझ पर कटाक्ष करते हुए बोली-

जिनको उड़ना था

वो परिंदे उड़ गए

अपने अलग-अलग

घोंसले बना

उससे जुड़ गए

ये परिंदे ही तो अब हमारे हैं

हमारे बुढ़ापे में

सुख दुःख के सहारे हैं

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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