हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #7 – जंगल ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की सातवीं कड़ी में उनकी एक सार्थक कविता “जंगल ”। आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #7 ☆
☆ जंगल ☆
बियाबान जंगल से
मिलती हैं उसे रोटियां,
अनजान जंगल से
मिटती है बच्चों की भूख,
खामोश जंगल से
जलता है उसका चूल्हा,
परोपकारी जंगल से
बनता है उसका घर,
अनमने जंगल से
बुझती है उसकी प्यास,
बहुत ऊँचे जंगल से
मिलती है उसे ऊर्जा,
उजड़े जंगल से
सूख जाते हैं उसके आंसू,
अब प्यारे जंगल से
भगाने की हो रही हैं बातें।
© जय प्रकाश पाण्डेय