सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “पूनम के चाँद ”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 50 ☆
बेपरवाह सी रात
और बेपरवाह सी मैं!
क्यों हो गयी हूँ इतनी बेफिक्र?
क्यों नहीं बचा कोई डर,
जबकि एक समय ऐसा भी था जब
ज़हन के हर टुकड़े में
बस घबराहट समाई रहती थी?
ज़रा सी बात पर
अमावस्या होने की आहट भी से
सीना कांप उठता था,
रूह थरथरा उठती थी
और मैं छुप जाती थी
किसी किताब के पीछे?
अब तो
न अमावस्या से रूह कांपती है
न पूनम के चाँद को देखकर
खुशी की गंगा बहती है –
अब तो मेरे रग-रग में
यूँ ही ख़ुशी भर उठी है
और बस गए हैं मेरे जिगर में
पूनम के कई चाँद!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈