श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर रचना स्वार्थ कितना गिराता है । श्रीमती कृष्णा जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर रचना के लिए नमन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 42 ☆
☆ स्वार्थ कितना गिराता है ☆
मन में जो बस गये
दिल में जो उतर गये
इक झलक क्या देखी
अपने ही होश कतर गये
है हरजाई वह बेदर्दी
क्षणिक प्यार को तरस गये
दूरियां कम होंगी सोचा था
पर खाईयों के पल बढ़ गये
स्वार्थ कितना गिराता है
सच को मसल आगे बढ़ गये
दिल रोया तड़प उठा था
बदल जाने किस बात पर गये
सच खूब कहा है किसी ने
हैं कुछ और कुछ और दिखा गये
मैं गलत थी सच सामने था
प्यार मे हैं कुछ और दिखा गये
प्यार उनका रहे सलामत
उस राह हम क्यों चले गये
लौटते हैं आज हम अपने में
चले थे पर वहीं फिर आ गये।
न भरोसा न विश्वास अब नहीं
अपना काम साथ बस यही
ईश्वर की करामात रही
उसने ही हकीकत दिखाई।
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश