श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना आशाओं के द्वार खुलेंगे…… । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 63 ☆
☆ आशाओं के द्वार खुलेंगे …. ☆
सिकुड़े सिमटे पेट
पड़े रोटी के लाले
दुर्बल देह मलीन
पैर में अनगिन छाले
मन में है उम्मीद
कभी कुछ तो बदलेगा
इस बीहड़ में कब तक खुद को रहे संभाले।।
सूरज के संग उठें
रात तक करें मजूरी
घर आकर सुस्ताते
बीड़ी जलाते सोचें,
क्यों रहती है भूख
हमारी रोज अधूरी,
कौन छीन लेता है अपने हक के रोज निवाले।।
अखबारों में
अंतिम व्यक्ति की तस्वीरें
बहलाते मंसूबे
स्वप्न मनभावन लगते
और देखता फिर
हाथों की घिसी लकीरें
क्या अपनी काली रातों में होंगे कभी उजाले।।
अपना मन बहलाव
एक लोटा अरु थाली
इन्हें बजा जब
पेट पकड़कर गीत सुनाते
बहती मिश्रित धार
बजे सुख-दुख की ताली।
आशाओं के द्वार खुलेंगे, कब बंधुआ ताले।।
रोज रात में
पड़े पड़े गिनते हैं तारे
जितना घना अंधेरा
उतनी चमक तेज है
क्या मावस के बाद
पुनम के योग हमारे
बदलेंगे कब ये दिन और छटेंगे बादल काले।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈