श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक भावप्रवण रचना “लाॅकडाऊन”। श्री श्याम खापर्डे जी ने इस कविता के माध्यम से लॉकडाउन की वर्तमान एवं सामाजिक व्याख्या की है जो विचारणीय है।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 10 ☆
☆ लाॅकडाऊन ☆
हमारा एक रिटायर्ड मित्र
एक दिन मिला
मिलते ही करने लगा
शिकवा और गिला
बोला,’ यार,
ये कैसा लाॅकडाउन है
कैदियों सा जीवन है
सार्वजनिक पार्क बंद
सार्वजनिक ग्रंथालय बंद
देवालय बंद
विद्यालय बंद
बाजार बंद
किराना स्टोर और
सब्जी भाजी बंद
जाएँ तो कहाँ जाएँ
बाहर निकलना भी बंद
किसको अपनी व्यथा सुनाये
कैसे अपना मन बहलाये
जब चाहे तब लाॅकडाऊन
लगाते हैं
हमारे जैसे वृध्द, बीमार
सीनियर सिटीजन को
क्यों तड़पाते हैं?
हमने कहा मित्र-
तुम्हारा वाजिब रोष है
परंतु, ये तो
महामारी का दोष है
खतरें में हम सबका जीवन है
इसलिए जरूरी यह लाॅकडाऊन है
हम लोग कुछ दिनो के लाॅकडाऊन से
कितने दुःखी, परेशान हैं
हर व्यक्ति व्यथित इन्सान है
मित्र, जरा सोचो
उन्हें देखों
हाशिए पर खड़े वो वंचित
लुटे हुए,पिटे हुए वो शोषित
सदियों से और आज भी
लाॅकडाऊन में जी रहे हैं
असमानता का ज़हर पी रहे हैं
तिरस्कार, घृणा जिनका
आभूषण है
पशुओं से भी बदतर
नारकीय जीवन है
मित्र,
ये महामारी का लाॅकडाऊन तो
कुछ दिनों में हट जायेगा
लेकिन क्या?
उन पीड़ित इन्सानों का
सामाजिक लाॅकडाऊन
कभी खत्म हो पायेगा ?
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
मो 9425592588
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈