श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  मानवीय संवेदनशील रिश्तों पर आधारित एक अतिसुन्दर एवं  समसामयिक कविता   “निर्मल सांसें मिलेगी तुमको।  आशा पर संसार टिका है। ईश्वर शीघ्र  इस आपदा से सारे विश्व को मुक्ति दिलाएंगे और सबको निर्मल सांसे मिलेगी। इस सार्थक  एवं  भावनात्मक कविता के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 65 ☆

☆ कविता – निर्मल सांसें मिलेगी तुमको ☆

 

ये कैसी लाचारी है

चारों ओर हाहाकारी हैं

 

मानव की विवशता  देखो

प्रकृति भी निठुराई है

श्वासों का सब खेल निराला

ऑंखें  सबकी पथराई है

 

मनुज डरा है मनुज से

सहमा भाई से भाई है

पूछ ना ले कोई कहीं से

स्वयं को सब ने बचाई है

 

यह कैसा है तांडव छाया

घनघोर विपदा है आई

मरे मिले ना कोई चार कांधे

रोने न कोई है माँ जाई

 

आग उगलते लपटों में

वसुंधरा भी कांप रही

बेबस होती जिंदगी में

धन भी काम न आया सही

 

बहता निर्मल स्वच्छ जल

बार बार कहता संदेश यही

अपने लिए जिएं सदा कल

प्रकृति के लिए जियो तो सही

 

निर्मल सांसें मिलेगी तुमको

नहीं बांधना होगा बंधन

मत काटो मेरे अंचल को

मिलेगा तुमको अनमोल धन

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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