श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना होकर खुद से अनजाने। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 64 ☆
☆ होकर खुद से अनजाने ☆
पल पल बुनता रहता है ताने-बाने
भटके ये आवारा मन चौसर खाने।
बीत रहा जीवन
शह-मात तमाशे में
सांसे तुली जा रही
तोले माशे में
अनगिन इच्छाओं के
होकर दीवाने……..।
कुछ मिल जाए यहाँ
वहाँ से कुछ ले लें
रैन-दिवस मन में
चलते रहते मेले
रहे विचरते खुद से
होकर अनजाने……।
ज्ञानी बने स्वयं
बाकी सब अज्ञानी
करता रहे सदा ये
अपनी मनमानी
किया न कभी प्रयास
स्वयं को पहचानें……।
अक्षर-अक्षर से कुछ
शब्द गढ़े इसने
भाषाविद बन अपने
अर्थ मढ़े इसने
जांच-परख के नहीं
कोई हैं पैमाने…….।
रहे अतृप्त सशंकित
सदा भ्रमित भय में
बीते समूचा जीवन
यूं ही संशय में
समय दूत कर रहा
प्रतीक्षा सिरहाने…..।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈