डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 21 साहित्य निकुंज ☆
☆ लघुकथा – छोटा सा घर ☆
स्वाति जब शादी करके गई तब सब लोग किराए के मकान में रहते थे। बस हर महीने किराए की तारीख आती वहीं चर्चा उखड़ती जाने कब होगा हमारा छोटा सा घर ।मां बाबू तो कहते बेटा अब सब तुम पर ही निर्भर है हम लोगों की जिंदगी तो कट गई किराए के मकान में।
यही सब स्वाति देख रही थी मन ही मन सोच रही थी कि मैं ही इन सबके सपने पूरा करूंगी तभी मुझे सुकून मिलेगा। स्वाति सोच रही थी लेकिन कैसे पूरा करूं अभी मुझे यहां आए कुछ ही महीने हुए हैं। स्वाति की लिखने पढ़ने में रुचि थी। तभी घर पर राजस जी आए उनकी बाते सुनकर स्वाति को लगा इनकी साहित्य में रुचि है। लेकिन वो केवल चाय नाश्ता रखकर चली गई मन ही मन सोचने लगी इनसे बात करने का मौका लगे तो कुछ परामर्श मिल जाए। स्वाति की इच्छा जैसे पूरी होते नजर आईं वो बाबू के गांव के थे उनका ट्रांसफर हुआ था घर तलाश रहे थे उनको भी बाबू ने हमारे ही ऊपर वाला घर दिलवा दिया। अंततोगत्वा मौका मिल ही गया। और उनकी मदद से स्वाति पत्र पत्रिकाओं में लिखने लगी। साथ ही कई संग्रह भी आ गए और तो और एक उपन्यास पर एक बड़े पुरस्कार की घोषणा हुई और उसे राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिल गया जिसमें 3 लाख की धनराशि मिली। इसके साथ ही स्वाति को प्रायमरी स्कूल में टीचिंग भी मिल गई उसे ऐसा लगा जैसे सब एक साथ होने के लिए ही रुका था। उसने सोचा अब सभी के मन की इच्छा पूरी करेंगे। स्वाति ने अपने पति से परामर्श किया और कुछ रकम जमा की और कुछ लोन लेकर “छोटा सा घर” खरीद लिया। मां बाबू को जब ग्रह प्रवेश करना था तभी सरप्राइज दिया। उनकी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। स्वाति ने बताया इस मुकाम तक पहुंचने में दादा राजस जी की अहम भूमिका है आज इनके सहयोग से ही हमने सपने बुने और आप सब के “छोटा सा घर” के सपने को पूरा किया।
© डॉ.भावना शुक्ल
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