श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “जहां में जो भी आया है …“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 78 ☆
जहां में जो भी आया है… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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मदद को मुफ़लिसों की हाथों को उठते नहीं देखा
किसी भी शख़्स को इंसान अब बनते नहीं देखा
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हवेली को लगी है आह जाने किन गरीबों की
खड़ी वीरान है इंसां कोई रहते नहीं देखा
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हमारे रहनुमा की हैसियत नज़रों में जनता की
कभी किरदार मैंने इतना भी गिरते नहीं देखा
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किसी की आह लेकर ज़र जमीं कब्ज़े में मत लेना
गलत दौलत से मैंने घर कोई हँसते नहीं देखा
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परिंदों की चहक शीतल पवन पूरब दिशा स्वर्णिम
वो क्या जानें जिन्होंने सूर्य को उगते नहीं देखा
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तो फिर किस बात पर हंगामा आरायी जहां भर में
इबादतगाह जब तुमने कोई ढहते नहीं देखा
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जहां में जो भी आया है हों चाहे ईश पैग़ंबर
समय की मार से उनको यहाँ बचते नहीं देखा
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बनेगा वो कभी क्या अश्वरोही एक नम्बर का
जिसे गिरकर दुबारा अस्प पे चढ़ते नहीं देखा
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पड़ेगें कीड़े पड़ जाते है जैसे गंदे पानी में
विचारों को जमा पानी सा जो बहते नहीं देखा
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बड़े बरगद की छाया से अरुण कर लो किनारा तुम
कि इसके नीचे रहने वाले को बढ़ते नहीं देखा
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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