श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “महज़ खादी पहिनने से कोई गांधी नहीं बनता…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 86 ☆
महज़ खादी पहिनने से कोई गांधी नहीं बनता… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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ये खंज़र और ये ढालें कहानी अपनी कहती हैं
किसी की मद भरी चालें कहानी अपनी कहती है
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नई कोपल से पेड़ों का पुराना पन नहीं छिपता
तने की खुरदरी छालें कहानी अपनी कहती हैं
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ये दावा झूठ पर्दाफाश होना है गुनाहों का
पुलिस की जाँच पडतालें कहानी अपनी कहती हैं
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छुपा लो मुफ़लिसी का हाल लेकिन वो नहीं छुपता
परोसी रोटियाँ दालें कहानी अपनी कहती हैं
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महज़ खादी पहिनने से कोई गांधी नहीं बनता
तुम्हारी रेशमी शालें कहानी अपनी कहती हैं
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उठाकर सर वजनदारी नहीं किरदार की दिखला
लचकती फल लदी डालें कहानी अपनी कहती है
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किन्ही को बात गोली से भी बढ़कर ज़ख्म करती है
किन्ही की मोटी पर खालें कहानी अपनी कहती हैं
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रिआया है अरुण खुशहाल पाते हक़ सभी अपना
मग़र ये रोज़ हड़तालें कहानी अपनी कहती है
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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