हिन्दी साहित्य – साहित्य निकुंज # 23 ☆ कविता ☆ सागर की गहराई ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  उनकी कविता सागर की गहराई । 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 23  साहित्य निकुंज ☆

☆ सागर की गहराई

 

कौन जान सका

है सागर की गहराई

कौन समझ सका

सागर के उतार चढ़ाव को।

कितना चाहा

सागर को कसना।

पर न हो सका संभव

उठती है जब तरंगे

मचलता है सागर

आता है उफान

बांहे फैलाता है सागर

समेटने के लिए

संभव नहीं लम्हों को रोकना

बेबस सी मै देखती हूं

इन लम्हों लम्हों को

उफनते सागर को

छलकते गागर को ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

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