श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण ग़ज़ल “दौलते और शुहरतें सब हैं…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ ग़ज़ल # 103 ☆
दौलते और शुहरतें सब हैं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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बादलों जैसे कभी आवारगी अच्छी नहीं
नौजवानों की हवा से दोसती अच्छी नहीं
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ख़ुश नहीं होता शिवाले वो सजाने से कभी
मार के हक़ गैर का ये रोशनी अच्छी नहीं
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ढाई ग़ज़ हो चाहिए आख़िर ज़मीं इंसान को
चाहतें दुनिया की दौलत की कभी अच्छी नहीं
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ये बढाती रक्त का है चाप ये सच मानिए
हर समय मुझसे तेरी नाराज़गी अच्छी नहीं
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हर कली पर रीझना औ तोड़ने की सोचना
यार ऐसी हुस्न की दीवानगी अच्छी नहीं
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दौलते और शुहरतें सब हैं न अपनापन मगर
गांव से इस शहर की ये ज़िन्दगी अच्छी नहीं
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ये गुज़ारिश औरतों से सख़्त अपना दिल करें
दिल के दुखते आँख में होना नमी अच्छी नहीं
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दौरे हाजिर के मसाइल ज़ीस्त की लिख कशमकश
सागरो मीना हरम पर शायरी अच्छी नहीं
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हारकर तक़दीर से दुनिया से नाता तोड़ना
कुछ न हासिल हो अरुण ये बेख़ुदी अच्छी नहीं
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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