हिन्दी साहित्य- स्वतन्त्रता दिवस विशेष – कविता – ☆ हमारी स्वतन्त्रता ☆ – सुश्री ऋतु गुप्ता
स्वतन्त्रता दिवस विशेष
सुश्री ऋतु गुप्ता
(प्रस्तुत है सुश्री ऋतु गुप्ता जी द्वारा रचित स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष कविता हमारी स्वतन्त्रता )
हमारी स्वतन्त्रता
कहने को हमें स्वतंत्र हुए वर्षों व्यतीत हुए
पर क्या हम सही मायने में स्वतंत्र हो पाए
पाश्चात्य संस्कृति अपनाने से कब चूक पाए
अपने संस्कारों को हृदय में जगह क्या दे पाए ?
यह अनगिनत अनगुथे सवाल जहन में
उतरते जाते हैं बस यूं ही कई बार
क्यों हमारे ख्याल पाश्चात्य संस्कृति में गिरफ्त
होकर रह गये पर रहती निरुत्तर हर बार।
कैसी विडंबना यह कि अपनी ही संस्कृति व
संस्कार नीरस लगने लगे हैं?
विरासत में मिले कायदे-कानून भी कहीं न
कहीं पांबदी से लगने लगे हैं।
माना तरक्की की है हर क्षेत्र में हमने बहुत
पर असली रूतबा खोने लगे हैं
इस भेड़ चाल में फंस स्वार्थप्रस्थ हो अपनी
कर्मठता व शौर्य को पीछे छोड़ने लगे हैं।
स्वछंद सही मायने में दरअसल तभी कहलायेंगे
जब मनोबल कभी किसी हाल में न गिरने देंगें
सुनेंगे सबकी, सीखेंगे, समझेंगें हर किसी से पर
आत्मसम्मान व संस्कारों की बलि न चढ़ने देंगें।
उन सब परतन्त्रता की बेड़ियों को तोड़ देगें जो हमारी
जन्मभूमि के हित में न हो जिनके लिए स्वतंत्र हुए
तब जाकर हम सही मायने में यह एहसास फिर कर
पायेंगे वाकई खुली हवा में साँस लेने के काबिल हुए।
© ऋतु गुप्ता, दिल्ली