स्वतन्त्रता दिवस विशेष

सौ. सुजाता काळे

(आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा रचित स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष कविता तिरंगा ! तू फिरा दे चक्र अशोक का…)

 

तिरंगा ! तू फिरा दे चक्र अशोक का… 

 

हे तिरंगा ! तू फहराता

विशाल नभ पर कायम है ।

 

आन बान और शान में तेरी

हर भारतवासी नतमस्तक है।

 

तेरे अंदर शांति का प्रतीक

फिर क्यों हिंसा की हलचल है?

 

कुसुंबी रक्त सबकी धमनी में

फिर क्यों धर्मा धर्म का भेदा भेद है?

 

हरित धरती से अन्न उपजता

फिर क्यों केसरिया- हरा भेद है?

 

तू लहराता आसमान में

तेरी नज़र सब ओर बिछी है ।

 

सीमाओं को बाँटता मानव

सीमा के अन्दर अंधेर मची है ।

 

गरीबों से लिपटी है गरीबी

सस्ती हुई बेकारी क्यों है?

 

ठेर ठेर चलता विवाद है

धर्म के नाम पर क्यों धूम मची है?

 

तू फिरा दे चक्र अशोक का

और मिटा दे अमानुषता।

 

तुझ सा ऊँचा मानव बन जाए

सदा रहे वह अचल अभेद सा।

 

© सौ. सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

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