हिन्दी साहित्य – ग़ज़ल – डॉ हनीफ
(डॉ हनीफ का e-abhivyakti में स्वागत है। डॉ हनीफ स प महिला महाविद्यालय, दुमका, झारखण्ड में प्राध्यापक (अंग्रेजी विभाग) हैं । आपके उपन्यास, काव्य संग्रह (हिन्दी/अंग्रेजी) एवं कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।)
ग़ज़ल
श्वासें रुकी -रुकी सी चेहरा मुरझा गया है
आंखों से टपकती शबनम दिल आज खो गया है
दागे हसरत रो पड़ी है कलियों को याद करके
पंखुड़ियां भी सिसक उठी है,परिंदा जो कुचल गया है
आती तो होगी याद समंदर को भी तूफां
साहिल के नशेमन वीरान जो बन गया है
बादल थम-थम के रोने क्यों लगा है
जमीं तो बदल चुकी है फसलों से भर गया है
‘अकेला’ सोच सोच के न कर सेहत खराब अपना
वो दुनियां उजड़ चुकी है तेरे दिल में जो बस गया है।
2.
देख लूं जो तुझको हम नजरों से बुला लेंगे
खता क्या हुई मेरी अश्कों से बता देंगे
कहाँ मिले थे कहाँ बिछुड़े थे ये मुझे याद नहीं
दिल की धड़कनें चलेगी जो रास्ता बता देंगे
जुस्तजू है मुझको कब से ये तुझे क्या पता
कूचों में लगे गुलशन तुझको गवाह देंगे
मौत भी अगर आये सो बार मर लूंगा मैं
मुस्कुराती नजरों से दामन जो थमा देंगे
‘अकेला’ दिन रात करता फरियाद खुदा से
जन्नत के बागों में दोनों को मिला देंगे ।
© डॉ हनीफ