डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)
( टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में जन्मीं डॉ मंजुला शर्मा जी को 25 वर्षों के अध्यापन कार्य का अनुभव है एवं अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। हम भविष्य में आपके चुनिंदा रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है फोन पर एक तथ्यात्मक एवं विचारणीय सार्थक कविता फुनवा यानी फोन)
☆ फुनवा यानी फोन ☆
(समाज में फोन प्रगति का आधार है मगर अति व मति का वैर रहता है , हर बुद्धिमान यही कहता है।यदि इसका प्रयोग काम के लिए ही अधिक होगा तभी सामाजिक जीवन में संतुलन रहेगा । )
ये फुनवा, ये फुनरा, ये फुनवा लेगा तेरी जान
तू इसका,तू इसका, तू इसका, खतरा ले पहचान
ये फुनवा,ये फुनवा, ये फुनवा लेगा तेरी जान।
शाम सवेरे जब भी देखूॅ, फोन पे तू बतियाए
बेढंगे सब काम करे और मन इसमें उलझाए
सारी दुनिया छोड के तूने इससे लिया है ज्ञान
ये फुनवा, ये फुनवा, ये फुनवा लेगा तेरी जान।
समय मिला न ज़रा तुझे, मम्मा से कर ले बात
हुई न जाने कबसे अपने पप्पा से मुलाकात
इसके आगे सबकुछ मिट्टी, फोन ही तेरे प्राण
ये फुनवा, ये फुनवा, ये फुनवा लेगा तेरी जान।
मेरे आगे- पीछे ऐसे लोगों की है फौज
चौबीस में से बाहर घंटे,फोन पे लें जो मौज
सोते जगते इसे ही देखें, फोन ही इनकी शान
ये फुनवा, ये फुनवा, ये फुनवा लेगा तेरी जान ।
कितने लोग हैं सैल्फी लेते, अपनी जान गंवाई
अजगर, शेर और ट्रेन के आगे सैल्फी लेनी चाही
जान से ज्यादा फोन का ही, रखा है जी ध्यान
ये फुनवा, ये फुनवा , ये फुनवा लेगा तेरी जान।
दोस्त यार और भाई-बंधु के, बदले है यह फुनवा
काम-धाम और रास-रंग के बदले है ये फुनवा
आज से इसको दूर रखेगा, मन में ले अब ठान
ये फुनवा,ये फुनवा , ये फुनवा लेगा।
© डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)
नई दिल्ली
अच्छी रचना