हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ माँ ☆ डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)

डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)

( डॉ मंजुला शर्मा जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में जन्मीं डॉ मंजुला जी को  25 वर्षों के अध्यापन कार्य का अनुभव है एवं अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। हम भविष्य में आपके चुनिंदा रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने की अपेक्षा करते हैं।)

☆ माँ ☆

माँ !

इस शब्द में छिपी है

तुम्हारी सम्पूर्ण आकृति

संसार से जाने के बाद भी

जब भी सुनाई देता है यह शब्द

तुम अपने पूरे वजूद के साथ

सम्मुख आ जाती हो

तुम्हारा प्यार कही अनकही बातें

वो उन्मुक्त हंसी और वो गीत

जब-जब तुम्हें याद कर आँख मूँदती हूँ

सुनाई पड़ने लगते हैं

माँ  प्यारी माँ तु चली गईं

पर जीवित रहोगी मेरी अंतिम साँसो तक

मेरे मन मस्तिष्क में अपनी पूरी क्षमता के साथ

माँ तुम अपनी छाया में रखना मुझे सदा

जहाँ भी हो हमारे शास्त्रों व पुराकथाओं के अनुसार

तुम रह रही हो रहो पर मेरा साथ कभी न छोड़ना

क्योंकि तम्हारे बिना कोई अस्तित्व नहीं मेरा

केवल तुम ही एक सहारा हो मेरा

और तुमसे ही है मेरा सवेरा ।

 

© डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)

नई दिल्ली