हिन्दी साहित्य ☆ डॉ कुन्दन सिंह परिहार ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

( ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है।  इस श्रंखला के माध्यम से  हम हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर नमन करते हैं।
हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंनेअपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया तथा हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं, उनके हम सदैव ऋणी रहेंगे । यदि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी के साथ  डिजिटल एवं सोशल मीडिया पर साझा कर सकें तो  निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। वे  हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत भी हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी, डॉ राजकुमार ‘सुमित्र’ जीप्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘ विदग्ध’ जी,  श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी डॉ. रामवल्लभ आचार्य जी, श्री दिलीप भाटिया जी, डॉ मुक्त जी एवं श्री अ कीर्तिवर्धन जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न  लिंक पर पढ़ सकते हैं : –

इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा  कि – प्रत्येक रविवार को एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध  वरिष्ठ साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।

आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम पीढ़ी के अग्रज एवं मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के व्यक्तित्व एवम कृतित्व को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें।

☆ हिन्दी साहित्य – नवाब साहब के पड़ोसी – डॉ कुन्दन सिंह परिहार ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆

(आज ससम्मान प्रस्तुत है वरिष्ठ  हिन्दी साहित्यकार  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी   के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श श्री जय प्रकाश पाण्डेय की कलम से। मैं श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का हार्दिक आभारी हूँ ,जो उन्होंने मेरे इस आग्रह को स्वीकार किया। शैक्षणिक पृष्ठभूमि के साथ अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी  डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी हम सबके आदर्श हैं। )

(संकलनकर्ता  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय)

25 अप्रैल 1939 को जन्मे डॉ कुंदन सिंह परिहार जी ने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कालेजों में 40 साल से ज्यादा अध्यापन कार्य किया है। व्यंग्य लेखन और कहानी लेखन में उन्होंने लकीर का फकीर बनना कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने बहुत सरल भाषा और बनावटहीन अपनी मौलिक सहज शैली में कहानी और व्यंग्य पर अलग अलग तरह के प्रयोग किए हैं। मेरा ख्याल है कि उन्होंने कभी छपने के लिए नहीं लिखा बल्कि उनका लिखा छपता ही रहा। 82 साल की उम्र में भी सीखने की ललक उनमें इतनी तीव्र है कि उन्होंने सोशल मीडिया में भी अपनी खासी पहचान बना करखी है, वह भी तब जब इनकी उम्र के लेखक सोशल मीडिया को कोसते हैं।

उनकी अधिकांश रचनाओं को पढने के बाद ऐसा लगता है कि परिहार जी अपने आसपास के लोगों की मनोदशा को पढ़कर उसकी गहरी पड़ताल करते हैं। पात्रों के मन की बात पकड़ने में वे उस्ताद हैं। उनका पात्र क्या सोच रहा है, उन्हें पता चल जाता है और उसके अनुसार उनके पात्र अपनी बात कहते हैं। परिहार जी के व्यंग्य पाठकों को झकझोरते हैं मूंधी चोट की मार करते हैं और पाठक के अंदर मनोवैज्ञानिक सोच पैदा करते हैं। उन्होंने अपने आसपास बिखरी विसंगतियों को हमेशा पकड़ कर चोट की और दोगले चरित्र वालों का चरित्र उकेर कर अपने व्यंग्य के जरिए जनता को दिखाया है।

परसाई जी तो व्यंग्य पुरोधा थे ही, उन्होंने व्यंग्य को एक सशक्त विधा बनाया और साहित्य जगत को बता दिया कि व्यंग्य मनोरंजन मात्र के लिए नहीं है। व्यंग्य अपना सामाजिक दायित्व निभाना भी बखूबी जानता है। परिहार जी ने अपनी परवाह न करके समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने का धर्म निभाया है। वे अपनी रचनाओं में जनता के पक्ष में खड़े दिखते हैं।

82 साल में भी वे निरंतर सक्रिय हैं और अभी अभी उनका एक व्यंग्य संग्रह “नवाब साहब का पड़ोस” प्रकाशित हुआ है।  वे 1960 से आज तक लगातार कहानी और व्यंग्य लिखने में अपनी कलम चला रहे हैं। पांच कथा संग्रह एवं तीन व्यंग्य संकलन के प्रकाशित होने के बाद भी हर माह व्यंग्यम गोष्ठी में वे नया व्यंग्य लिखकर पढ़ते हैं। वे सिद्धांतवादी हैं, स्वाभिमानी हैं, किन्तु, अभिमानी कदापि नहीं। उनकी अपनी अलग तरह की धाक है। चेलावाद और गुटबंदी से वे चिढ़ते हैं।  यही कारण है कि उनकी कलम एक अलग साफ रास्ता बनाकर चलती रही है।

धुन के इतने पक्के कि साहित्यिक कार्यक्रमों में एनसीसी के अफसर की ड्रेस में दिखने में कभी संकोच नहीं किया। साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी वजनदार बात से कभी श्रोताओं को चौंकाते रहे तो कभी अपनी सहज सरल भाषा में लिखे व्यंग्यों से चिकोटी काटते रहे। उनकी कहानियों में भी व्यंग्य की एक अलग तरह की धारा बहती मिलती है। प्रतिबध्द विचारधारा के धनी परिहार जी की सोच मनुष्य की बेहतरी के लिए रचनाएं लिखने से है।

हमारी मुलाकात उनसे 40-42 साल पुरानी है और इन वर्षों में हमने कभी किसी प्रकार की दिखावे की प्रवृत्ति नहीं देखी, 42 साल से उनकी कदकाठी और चश्मे से झांकती निगाहों में वे शांत संयत धीर गंभीर दिखे। स्वाभिमानी जरुर हैं पर हर उम्र के लेखक पाठकों के बीच लोकप्रिय हैं।

हरीशंकर परसाई जी ने परिहार जी की रचनाओं को पढ़कर लिखा है “परिहार के पास तीखी नजर और प्रगतिशील दृष्टिकोण है, वे राजनीति, समाजसेवा, शिक्षा संस्कृति, प्रशासन आदि के क्षेत्रों की विसंगतियों को कुशलता से पकड़ लेते हैं”

अपनी कहानियों के पात्रों के बारे में परिहार जी कहते हैं – मेरे पात्र बड़े प्यारे हैं कमजोर, निश्छल और भोले भाले हैं, ईमानदार और आसानी से ठगे जाने वाले लोग हैं। वे बिना कोई हलचल मचाए दुनिया में आते हैं और बेनाम, खामोशी से बिदा हो जाते हैं।”

डॉ परिहार जी अगली पीढ़ी के लिए चिंतित हैं क्योंकि अगली पीढ़ी के सामने हर तरह के संकट ही संकट प्रगट हो रहे हैं ऐसी स्थिति में वे कहते हैं कि- “ऐसे विकट माहौल में प्रार्थना की जा सकती है कि हमारा प्रजातन्त्र सच्चा प्रजातंत्र बने और हमारे जन प्रतिनिधि सच्चे बनकर प्रजा की समस्याओं के समाधान में संलग्न हों।”

आदरणीय डॉ परिहार जी मात्र नई पीढ़ी ही नहीं अपितु हमारी पीढ़ी के लिए भी आदर्श हैं।

 

संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर 

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