डॉ भावना शुक्ल
☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र” जन्मदिवस विशेष – पापा जी यानी मेरे पिताजी: डॉ.सुमित्र ☆
पिता को पापा कहना कब शुरू किया यह याद नहीं . लगता है यह संबोधन तुतलाहट से निकला होगा. हम भाई-बहनों को कभी-कभार डांट जरुर पड़ी है, मार नहीं. शायद एक आद बार भैया के कान पकड़े गए हों. गर्व यह कि हमें पापा जी का लाड़ दुलार तो मिलता रहा किंतु, उन की व्यस्तता के कारण हमारी स्कूल की देखभाल का जिम्मा ममतामयी मां ही संभालती रहीं .
घर का वातावरण धार्मिक, साहित्यिक सांस्कृतिक था. घर में गोष्ठियां होती. हम शालीन श्रोता होते, सुनते सुनते सो जाते. कुछ बड़े होने पर तैयारियों में हाथ बटाने लगे. फिर जाना कि हमारे पिता कवि लेखक पत्रकार और शिक्षक हैं. मां भी शिक्षिका हैं लेखिका है.
(डॉ। राजकुमार तिवारी “सुमित्र” एवं उनकी बेटी डॉ भावना शुक्ल)
माँ बताती थी– भावना तुम्हारा जन्म एल्गिन अस्पताल में हुआ था. और पहले ही दिन पिताजी के कवि मित्र सरदार सरवण सिंह पैंथम ने तुम्हारे हाथों में चांदी का रुपया देकर शुभाशीष दिया था. पिता का परिचय संसार व्यापक सभी वरिष्ठ साहित्यकारों का स्नेहाशीष उन्हें प्राप्त था. कविवर नर्मदा प्रसाद खरे, पंडित भवानी प्रसाद तिवारी, झंकनलाल वर्मा छेल जी, मनोज जी, श्रीबाल पांडे, गोविंद तिवारी उन्हें पुत्रवत मानते थे.
बाल्यकाल में ही मुझे महीयसी महादेवी वर्मा, डॉक्टर रामकुमार वर्मा, सेठ गोविंददास, व्यौहार राजेंद्र सिंह, कालिका प्रसाद दीक्षित जानकी वल्लभ शास्त्री, विद्यावती कोकिल, सरला तिवारी, शकुंतला सिरोठिया, रत्न कुमारी देवी आदि के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
घर की गोष्ठियों में रामकृष्ण दीक्षित विश्व, तरुण जी, पथिक जी, मधुकर खरे, ओंकार तिवारी, अजय वर्मा, डॉक्टर नरेश पांडे, देशभक्ति नीखरा, राज बिहारी पांडेय और चाचा गणेश प्रसाद नामदेव का स्नेह प्राप्त हुआ.
पिताजी शिक्षक भी रहे, प्राइमरी से लेकर महाविद्यालय-विश्वविद्यालय तक के. लेकिन कैसे शिक्षक? छात्र छात्राओं की ना तो ट्यूशन की ना उन से नाम इकराम लिया. बल्कि साल में एक माह का वेतन उनपर ही खर्च कर देते थे.
साथी शिक्षक ऐसे सगे कि क्या होंगे? सदा भाईचारा रहा.
पिताजी प्रारंभ से ही पत्रकारिता, विशेष रूप से साहित्य पत्रकारिता से जुड़े रहे. पहले अंशकालिक फिर पूर्णकालिक. नारी निकुंज के संपादन के समय में बारह-चौदह घंटे प्रेस में बिताते.
प्रतिष्ठितों को मान और नवोदिता को प्रोत्साहन इनका चलाएं एक संबोधन यही उनका संकल्प रहा. प्रेस में आने वालों की चाय तक कभी नहीं पी जो भेंट आती उसे बटवा देते.
सभी साहित्यकारों और संस्थाओं से जुड़ाव था. मित्र संघ की विशिष्ट गोष्ठियां, हिंदी मंच भारतीय अन्य आयोजन संचालनकर्ता यही होते. बहुत प्रचलित हुआ” एवं प्रयोजन|
गोष्ठी, आयोजन स्मारिका और सतत लेखन रात के दो-तीन बजे तक जागरण | सुबह फिर चुस्त-दुरुस्त|
पिता के मित्रों की संख्या बहुत है किंतु विरोधी स्वर मना रहे हो ऐसा भी नहीं. किंतु, उन्होंने कभी भी ना तो किसी के विरुद्ध कुछ कहा ना लिखा. उनका कहना है- समय उत्तर देगा|
पिताजी राज्य श्री परमानंद पटेल के प्रिय पात्र थे. लोगों ने उड़ाया की सुमित्र जी खूब माल काट रहे हैं जब की असलियत यह है उन्होंने कभी उनसे किसी भी प्रकार का आर्थिक लाभ नहीं लिया. बीमार होते हुए भी पटेल साहब अपनी पत्नी के साथ हमारे घर पधारे मेरी शादी में, पिताजी भेंट लेने को भी राजी नहीं थे. बामुश्किल उन्होंने शगुन की एक साड़ी स्वीकार की.
पिताजी का कहना है कि हमारी और कुछ तो नहीं है—– न लेने की शक्ति और संकल्प जरूर है.
व्यस्त दिनचर्या में पिताजी कब पढ़ लेते हैं कब लिख लेते हैं पता ही नहीं चलता.
वह केवल अपने ही नहीं पढ़ते ज्ञान का वितरण करते हैं, अधिकृत गाइड नहीं है. किंतु उन्होंने पीएचडी और एमफिल के 30-35 छात्र-छात्राओं का सामग्री प्रदान की .
पिता के जीवन का संघर्ष उनकी मां के देहावसान से शुरू हुआ और अब आयु के आठवें दशक में प्राण प्रिय पत्नी का वियोग, ऊपर से स्वस्थ, भीतर से टूटे. भैया हर्ष, भाभी मोहिनी उनकी देखभाल में तत्पर हैं. प्रियम उनकी जीवनशक्ति है. हम लोग फोन के माध्यम से संपर्क बनाए रहते हैं.
संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले पिता के स्वभाव में तुनकमिजाजी है. क्रोध कम होता है. आता है तो भयंकर. अच्छी बात यह कि पूरा जल्दी उतर जाता है.
स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है किंतु, भूल जाते हैं कि कल कौन आया था, चश्मा या किताब कहां रखी है.
यात्रा प्रिय रही है.
पिता की दुर्बलता को शक्ति बनकर संभालती थी मेरी मां.
मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानती हूँ, मुझे विरासत में साहित्यिक निधि मिली. बचपन से मैंने साहित्य की उंगली पकड़कर भी चलना सीखा है. लेकिन तब से लेकर आज तक जो कुछ भी लेखन किया है बिना पिता को सुनाएं दिखाएं रचना पूर्ण नहीं होती. आज भी गलतियों पर डांट पड़ती है.
मुझे गर्व है कि मैं साहित्यकार पिता डॉक्टर सुमित्र और साहित्य साधिका मां स्मृति शेष डॉक्टर गायत्री तिवारी की बेटी हूँ.
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056
मोब 9278720311 ईमेल : [email protected]
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