हिन्दी साहित्य ☆ दीपिका साहित्य # 7 ☆ उड़ता पंछी ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”
सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”
( हम आभारीसुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी के जिन्होंने ई- अभिव्यक्ति में अपना” साप्ताहिक स्तम्भ – दीपिका साहित्य” प्रारम्भ करने का हमारा आगरा स्वीकार किया। आप मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं में भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर प्रेरणास्पद कविता उड़ता पंछी । आप प्रत्येक रविवार को सुश्री दीपिका जी का साहित्य पढ़ सकेंगे।
☆ दीपिका साहित्य #7 ☆ उड़ता पंछी ☆
मै उड़ता पंछी हूँ आसमान का,
मुझे पिंजरे में ना बांधों,
जीने दो मुझे खुल के,
रिवाज़ो की न दुहाई दो,
जीना है अपने तरीको से,
अपनी सोच की न अगवाई दो,
रहने दो कहना सुनना,
साथ रहने की सच्चाई दो,
जी लिया बहुत सिसक-सिसक के,
अब हंसने की फरमाईश दो,
अपने पर जो रखे थे समेट के,
उन्हें आसमा में फैलाने की बधाई दो,
सिर्फ अपनी परछाई नहीं,
साथ चलने के हक़ की स्वीकृति दो,
ना तुम ना मैं की लड़ाई,
“हम” बने रहने का आगाज़ दो,
मै उड़ता पंछी हूँ आसमान का,
मुझे पिंजरे में ना बांधों . . .. . .
© सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान ”
पुणे, महाराष्ट्र