हिन्दी साहित्य – ☆ दीपिका साहित्य # 3 ☆ कविता – अप्सरा . . . ☆ – सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”
सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”
( हम आभारीसुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी के जिन्होंने ई- अभिव्यक्ति में अपना” साप्ताहिक स्तम्भ – दीपिका साहित्य” प्रारम्भ करने का हमारा आगरा स्वीकार किया। आप मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं में भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर कविता अप्सरा . . . । आप प्रत्येक रविवार को सुश्री दीपिका जी का साहित्य पढ़ सकेंगे।
☆ दीपिका साहित्य #3 ☆ कविता – अप्सरा . . .☆
बादलो से झांकती धूप सी लगती हैं ,
जंगल में नाचते मोर सी लगती हैं ,
जब भी मिलती है शरमाया करती हैं ,
अपने आँचल में तारों को रखती हैं ,
चंचल चितवन चंचल सा मन रखती हैं ,
आँखों से जैसे शरारत झलकती हैं ,
गलियों से जब भी गुजरती हैं ,
खुशबू से आँगन भरती हैं ,
जब भी मुझसे बातें करती हैं ,
कानों में जैसे रस घोलती हैं ,
हर झरोखे से झांकती नज़र ,
बस उसको ही देखा करती हैं ,
हाँ वो अप्सरा सी लगती हैं ,
पर ख्वाबों में ही आया करती हैं ,
बादलो से झांकती धूप सी लगती हैं ,
जंगल में नाचते मोर सी लगती हैं . . .
© सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान ”
पुणे, महाराष्ट्र