डॉ श्याम बाला राय
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार , पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ श्याम बाला राय जी के हम हार्दिक आभारी हैं। अपने ई-अभिव्यक्ति में प्रथम पाक्षिक स्तम्भ – संस्कृति एवं साहित्य प्रारम्भ करने के हमारे आग्रह को स्वीकार किया। आपकी उपलब्धियां इस सीमित स्थान में उल्लेखित करना संभव नहीं है। कई रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित। कई राष्ट्रीय / प्रादेशिक /संस्थागत पुरस्कारों /अलंकारों से पुरस्कृत /अलंकृत । लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित। कई साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं का प्रतिनिधित्व। आकाशवाणी से समय समय पर रचनाओं का प्रसारण । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘मर्यादित संस्कृति की विजय’।)
(अब आप प्रत्येक माह के 15 तारीख को आपकी कविता एवं 30/31 तारीख को आपकी लघुकथा नियमित रूप से आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ पाक्षिक स्तम्भ – संस्कृति एवं साहित्य #1☆ मर्यादित संस्कृति की विजय ☆
ए मेरे वतन तीर्थ, तू है इतना महान,
आने न दिया वायरस, बैक्टीरिया, है ये तेरा कमाल ,
एक नदी में,एक जगह पर खाते पीते रहते लोग,
पञच तत्व के स्वच्छीकरण में लगा ये तीर्थ महान,
दे दिया एच आई वी कांगो ने,
पनपाया नीपह को मलेशिया ने,
ईबोला ने बोला सूडान से,
फैलाया बर्ड फ्लू होंगकोंग ने
कहर कोरोना का चीन ने दिया,
अमर्यादित देशों की रही यही कहानी,
पवित्र पूजा तीर्थ कहानी,
दुर्गा पूजा, नागपञचमी, नवरात्रि
वैष्णो देवी, स्वर्ण मन्दिर, जगन्नाथ धाम,
बद्रीनाथ, केदारनाथ, शिरडीधाम,
जाते भीड़ के साथ,
कुम्भ, पुष्कर, रामेश्वर, गंगासागर
करते स्नान एक साथ,
अष्टविनायक, सिद्धिविनायक
द्वाद्श ज्यतिर्लिंग में होती भीड़ भयानक,
फिर कभी न होते हम वायरसी,
यह है मेरी मेरी मर्यादा की कहानी।
© डॉ श्यामबाला राय
द्वारा श्री यश्वन्त सिंह, यू- 28, प्रथम तल, उपाध्याय ब्लाक, शकरपुर, दिल्ली – 110092
मोबाइल न0 – 9278280879
अच्छी रचना