हिन्दी साहित्य ☆ पुस्तक विमर्श #1- स्त्रियां घर लौटती हैं – “विवेक की  कविताएं एक मानसिक अभयारण्य बनाती है” – श्री अरुण कमल ☆

पुस्तक विमर्श – स्त्रियां घर लौटती हैं 

श्री विवेक चतुर्वेदी 

( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह  स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ।  यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया और वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है। ई-अभिव्यक्ति  की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है।  इस श्रृंखला की प्रथम कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं सुप्रतिष्ठित  वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कमल जी के आशीर्वचन “विवेक की  कविताएं एक मानसिक अभयारण्य बनाती है “।)

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☆ पुस्तक विमर्श #1 – स्त्रियां घर लौटती हैं – “विवेक की  कविताएं एक मानसिक अभयारण्य बनाती है” – श्री अरुण कमल ☆

विवेक चतुर्वेदी की कविताओं में सघन स्मृतियां हैं, भोगे हुए अनुभव हैं और विराट कल्पना है इस प्रकार वे भूत, वर्तमान और भविष्य का समाहार कर पाते हैं, और यहीं से जीवन के वैभव से संपन्न समवेत गान की कविता उत्पन्न होती है  कविता एक वृंदगान है पर उसे एक ही व्यक्ति गाता है।

अपनी कविता में विवेक, भाषा और बोली बानी के निरंतर चल रहे विराट प्रीतिभोज में से गिरे हुए टुकड़े भी उठाकर माथे पर लगाते हैं उनकी कविता में बासमती के साथ सावां कोदो भी है वे बुंदेली के, अवधी के, और लोक बोलियों के शब्द ज्यों का त्यों उठा रहे हैं यहां पंक्ति की जगह पांत  है, मसहरी है, कबेलू है, बिरवा है, सितोलिया है जीमना है वे भाषा के नए स्वर में बरत रहे हैं रच रहे हैं हालांकि अभी उन्हें अपनी एक निज भाषा खोजनी है और वे उस यात्रा में हैं।

वे लिखने की ऐसी प्रविधि का प्रयोग करने में सक्षम कवि हैं, जिसमें अधिक से अधिक को कम से कम में कहा जाता है।

विवेक की  कविताएं एक मानसिक अभयारण्य बनाती है उनके लिए जिनका कोई नहीं है उनमें स्त्रियां भी हैं बूढ़े भी बच्चे भी,और हमारे चारों ओर फैली हुई यह धरती भी।

हिन्दी कविता के गांव में  विवेक चतुर्वेदी की आमद भविष्य के लिए गहरी आश्वस्ति देती है मुझे भरोसा है कि वे यहां नंगे पांव घूमते हुए इस धरती की पवित्रता का मान रखेंगे।

अस्तु

‌अरुण कमल

© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर ( म प्र ) 

ई-अभिव्यक्ति  की ओर से  युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी को इस प्रतिसाद के लिए हार्दिक शुभकामनायें  एवं बधाई।