हिन्दी साहित्य ☆ पुस्तक विमर्श #3- स्त्रियां घर लौटती हैं – “जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी” – सुश्री संध्या श्रीवास्तव☆

पुस्तक विमर्श – स्त्रियां घर लौटती हैं 

श्री विवेक चतुर्वेदी 

( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह  स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ।  यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया और वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है। ई-अभिव्यक्ति  की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है।  इस श्रृंखला की तीसरी कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं  सुश्री संध्या श्रीवास्तव के विचार  “जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी“।)

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☆ पुस्तक विमर्श #1 – स्त्रियां घर लौटती हैं – “जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी” – सुश्री सन्ध्या श्रीवास्तव ☆

(चण्डीगढ़ में रह रहीं… प्रतिभाशाली…प्रयोगधर्मी चित्रकार सुश्री सन्ध्या श्रीवास्तव ने ‘स्त्रियां घर लौटती हैं’ पढ़कर भेजा…एक पाठक का रचनात्मक संतोष… जो निःसंदेह एक कवि को रचनात्मक साहस देता है ।  आत्मिक आभार सन्ध्या!  – विवेक चतुर्वेदी।

 

अमेज़न से आज तुम्हारा कविता संग्रह मिला।

वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश मानस ने कहीं कहा है – “कविता की पहली सामर्थ्य है उसकी यात्रा-शक्ति ।

यात्रा-शक्ति यानी पाँव-पाँव चलने का हौसला । यात्रा-शक्ति अर्थात् स्मृति के पर्वत,  खाई,  जंगल,  घाटी,  बीहड, गाँव,  शहर,  बस्ती और गली फिर घर – कहीं भी जा पहुँचने की शक्ति । पाठक या श्रोता यानी भावबोध तक सारे थकानों, सारी उदासियों, सारे अड़चनों के बाद भी उपस्थिति की आत्मीय जिद  !

जिस कविता में यह सामर्थ्य होगी, वह मनुष्य या मन की सारी विस्मृतियों के बाद भी वनफूल की तरह महमहा उठेगी।”

आज तुम्हारे संग्रह से शीर्षक कविता ‘स्त्रियां घर लौटती हैं’ पढ़ रही थी कि Family WhatsApp group में हजारों मील दूर से यही कविता पोस्ट होकर पास ही रखे मोबाइल पर सामने आ खड़ी हुई तो लगा कि मानस जी की टिप्पणी कितनी सार्थक है,

पुस्तक की और भी कविताएं भी कितनी सुन्दर,कितनी गहरी हैं और इनमें स्त्री मन की समझ बेहद हैरान करती है

मुझे लगता है जल्द ही ये कविताएं पंछियों की तरह सरहदों के पार भी उड़ जाएंगी

मेरी शुभकामनाएं साथ हैं।

–  सन्ध्या श्रीवास्तव

 

© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर ( म प्र ) 

 

ई-अभिव्यक्ति  की ओर से  युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी को इस प्रतिसाद के लिए हार्दिक शुभकामनायें  एवं बधाई।