हिन्दी साहित्य ☆ पुस्तक विमोचन/समीक्षा ☆ परिदृश्य चिन्तन के – डॉ मुक्ता ☆ समीक्षा – सुश्री सुरेखा शर्मा
डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि – कल दिनांक 7 फ़रवरी 2020 को डॉ मुक्त जी के दो निबंध/आलेख संग्रह “परिदृश्य चिंतन के” और “हाशिये के उस पार”का विमोचन आदरणीय डॉक्टर पूर्णमल गौड़ (निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी) के मुख्य आतिथ्य में राज्य शैक्षिक अनुसंधान केंद्र गुरुग्राम में कादम्बिनी क्लब गुरुग्राम के सौजन्य से संपन्न हुआ। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि – डॉक्टर अशोक दिवाकर (उपकुलपति, स्टारैक्स युनिवर्सिटी गुरुग्राम), डॉक्टर मुकेश गंभीर (निदेशक रेडियो -स्टेशन,पलवल), डॉक्टर सविता चड्ढा (वरिष्ठ साहित्यकार ), डॉक्टर अमरनाथ अमर (उपनिदेशक दूरदर्शन ) एवं सुश्री सुरेखा शर्मा- संचालिका (कादम्बिनी क्लब गुरुग्राम) की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है सुश्री सुरेख शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक समीक्षा। शीघ्र ही हम “हाशिये के उस पार”की पुस्तक समीक्षा /आत्मकथ्य प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे। )
☆ डॉ मुक्त जी की पुस्तकें – ‘परिदृश्य चिंतन के‘ और ‘हाशिये के उस पार‘ विमोचित – सुश्री शकुंतला मित्तल ☆
7 फरवरी 2020, शुक्रवार ,कादंबिनी क्लब द्वारा गुरूग्राम ,राज्य शैक्षिक अनुसंधान केंद्र के अन्वेषण कक्ष में, हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक और राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित डॉ मुक्ता शर्मा कृत दो पुस्तकों- ‘परिदृश्य चिंतन के’और ‘हाशिए के उस पार’ का लोकार्पण और परिचर्चा का आयोजन अनेक सुधि साहित्यकारों, विद्वानों और कलमकारों की उपस्थिति में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
इस आयोजन में हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर पूरणमल गौड़ मुख्य अतिथि के रुप में शोभायमान रहे। विशिष्ट अतिथि के रुप में डाॅक्टर अशोक दिवाकर (उप कुलपति ,स्टारैक्स युनिवर्सिटी गुरूग्राम) डाॅक्टर मुकेश गम्भीर ( निदेशक, रेडियो स्टेशन पलवल ) डाक्टर सविता चड्ढा जी (वरिष्ठ साहित्यकारा ) डॉ अमरनाथ अमर जी(उपनिदेशक दूरदर्शन) जैसी महान विभूतियां मंचासीन थी।
कार्यक्रम का शुभारंभ गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन व विख्यात कवयित्री वीना अग्रवाल जी के मधुर कंठ में प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ ।इसके पश्चात वरिष्ठ पत्रकार एवं हिंदी सेवी स्वर्गीय श्री मुकुल शर्मा जी और अखिल भारतीय शिक्षाविद् श्री मोहनलाल ‘सर’ जी की स्मृति में मौन रखकर सब उपस्थित साहित्यकारों ने उनके प्रति अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित की ।कार्यक्रम का संचालन सुविख्यात कवयित्री एवं लेखिका श्रीमती वीना अग्रवाल जी ने बहुत ही मोहक और भावपूर्ण ढंग से किया।इसके बाद सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया गया। तत्पश्चात सभी साहित्यकारों और मनीषियों की उपस्थिति में अतिथियों के कर कमलों द्वारा ‘परिदृश्य चिंतन के ‘और ‘हाशिये के उस पार ‘पुस्तक का लोकार्पण हुआ। फिर सभी अतिथियों ने डाक्टर मुक्ता को भी कार्यक्रम की मुख्य केन्द्र बिन्दु मान उन्हें सम्मानित किया। इसी मंच से कादंबिनी पत्रिका के जनवरी अंक का भी विमोचन किया गया।
लेखिका डॉ मुक्ता की पुस्तक ‘परिदृश्य चिंतन के’ की विस्तृत समीक्षा कादंबिनी क्लब की संचालिका एवं वरिष्ठ लेखिका श्रीमती सुरेखा शर्मा जी ने, दिल्ली नगर निगम के प्रशासनिक अधिकारी पद से सेवानिवृत्त वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती सरोज शर्मा जी ने और शिक्षिका मोनिका शर्मा ने की और दूसरी पुस्तक ‘हाशिये के उस पार’ की समीक्षा सुविख्यात कवयित्री एवं शिक्षिका डॉ बीना राघव जी ने प्रस्तुत की।
सभी शिक्षकों ने ‘परिदृश्य चिंतन के’ पुस्तक के लिए लेखिका को बधाई एवं शुभकामनाएँ समर्पित करते हुए उसे हर आयु वर्ग के लिए अत्यंत उपयोगी बताया। सुरेखा जी ने पुस्तक का बारीकी से समीक्षात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि लेखिका ने इन निबंधों में अपना हृदय खोल कर रख दिया है। ये निबंध पाठकों के जीवन के ‘तमस’ को ‘आलोक’ में बदलने का मंत्र देने वाले सिद्ध होंगे। उन्होंने इन निबंधों को ध्यान समाधि की तरह जीवन की हर समस्या का समाधान देने वाला बताया।उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में जहाँ लेखिका की सूक्ष्म, गम्भीर ,पैनी जीवन दृष्टि का परिचय मिलता है, वहीं इसमें व्यक्त उनके विचार उनकी सरलता, विनम्रता और सहज उपलब्ध व्यक्तित्व का भी परिचय देते हैं।
श्रीमती सरोज शर्मा जी ने पुस्तक के आवरण की प्रशंसा करते हुए कहा कि आवरण को देख उन्हें शरीर के वे सात चक्र अनायास स्मरण हो आए जो मनुष्य को उर्ध्वगामी बनाते हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक के निबंध हर वर्ग के व्यक्ति को विशेषतया युवा वर्ग की इच्छाशक्ति दृढ़ कर यह विश्वास देते है कि ‘तुम कर सकते हो’। यह पुस्तक आत्मावलोकन पर बल देते हुए कोरी शिक्षा ही नहीं देती वरन व्यावहारिक समाधान भी देती है। सरोज शर्मा जी ने श्री सुमति कुमार जैन की भेजी हुई समीक्षा का भी वाचन किया, जिसमें उन्होंने इस पुस्तक को समाजोपयोगी, सर्वजन हिताय और कल्याणकारी बताते हुए यह कहा यह चिंताओं का कोहरा हटाने में कारगर साबित होगी ।
शिक्षिका मोनिका शर्मा ने अपनी समीक्षा में इसे जीवन के उलझे धागों को सुलझाने में सहायक बताते हुए कहा कि इस पुस्तक के निबंध मिट्टी और संस्कारों से जुड़ने की प्रेरणा देते हुए प्रकृति के प्रत्येक कण से प्रेम करना सिखाते हैं। उन्होंने पुस्तक को विद्यालय और विश्वविद्यालय की शिक्षा में शामिल करने के लिए बहुत उपयोगी बताते हुए कहा कि यह पुस्तक नीव का पत्थर साबित होगी। उन्होंने पुस्तक के कुछ काव्यमय उद्धरण भी अपने मोहक अंदाज में प्रस्तुत किए।
सुविख्यात कवयित्री एवं शिक्षिका डॉ बीना राघव जी ने लेखिका डाॅक्टर मुक्ता की दूसरी पुस्तक ‘हाशिये के उस पार’ पुस्तक के लिए हृदय से बधाई और साधुवाद देते हुए समीक्षा की । यह लघुकथा संग्रह है। उन्होंने इन लघुकथाओं को संक्षिप्त और सारगर्भित बताते हुए कहा कि ये लघु कथाएँ ‘हाशिए के उस पार’ खड़े व्यक्ति की पीड़ा को दर्शाती हैं और समाधान भी प्रस्तुत करती हैं। इनमें विषय वैविध्य है। संक्षिप्त और सारगर्भित ये लघु कथाएँ अपने आप में भावों का पूरा सागर समेटे हुए हैं।बीना जी ने पुस्तक की एक लघुकथा का वाचन भी किया।
तत्पश्चात लेखिका डॉ मुक्ता ने ‘परिदृश्य चिंतन के’ पुस्तक पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। लेखिका डॉ मुक्ता ने बताया कि जब आर्थिक मंदी के दौर में कॉर्पोरेट क्षेत्र से निकाले गए युवा निराश हो आत्महत्या की ओर बढ़ रहे थे तो 2009 में उन्होंने ‘चिंता नहीं चिंतन’ पुस्तक लिख युवा वर्ग को उत्साहित करने का जो प्रयास किया था ‘परिदृश्य चिंतन के’ उसी कड़ी में उनका दूसरा प्रयास है। यह पुस्तक 43 निबंधों का संग्रह है। युवाओं को सकारात्मक सोच प्रदान कर इसके निबंध उन्हें चिंता, तनाव अवसाद से मुक्त कर उद्देश्य प्राप्ति के लिए अग्रसर करते हैं। लेखिका ने अपने निबंध में अतीत को ‘अंधकूप’ माना है और कहा कि भविष्य को तराशने और संवारने के लिए अतीत के अंधकूप से निकलना अति आवश्यक है। लेखिका ने चिंता को निकृष्ट और चिंतन को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए व्यक्ति को अंतर्मन की शक्तियों ,प्रतिभा और एकाग्रता से अन्य विकल्प ढूँढ रास्ते बदलने की प्रेरणा दी है।रास्ते बदलो, सिद्धांत नहीं क्योंकि उनके अनुसार सिद्धांत संजीवनी और कवच बन मनुष्य की रक्षा करते हैं। भौतिक सुखों के पीछे न भागते हुए हमें जीवन मूल्यों को सर्वोपरि रखते हुए सत्यम शिवम सुंदरम को जीवन में चरितार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जीवन को उत्सव मानते हुए दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास, सकारात्मक सोच को उन्होंने सफलता के विभिन्न सोपान बताया है।
लेखिका के वक्तव्य ने सभागार में सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तत्पश्चात श्री अशोक दिवाकर जी ने डॉक्टर मुक्ता को सार्थक और राह दिखाने वाली लेखिका कहकर संबोधित करते हुए उनकी पुस्तक के लिए उन्हें बहुत सी बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित की। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक लोगों को निराशा के अंधकार से बाहर निकालने में सहायक होगी और लेखिका के स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहा कि डॉ मुक्ता हमारे बीच प्रेरणा पुंज बनकर आई है और इसी तरह आगे भी वे अपने सशक्त लेखन के द्वारा समाज को रोशन करती रहेंगी।
सविता चड्ढा जी ने ‘पुस्तक परिदृश्य चिंतन के’ को ‘लाइट हाउसं (प्रकाश गृह) कहा और यह आशा व्यक्त की कि यह वाचन कैसेट के रूप में भी उपलब्ध होनी चाहिए। उन्होंने अपने जीवन के उदाहरणों के द्वारा भी पुस्तक के निबंधों की सार्थकता को पुष्ट किया और कहा कि लेखिका ने अन्य लोगों के उद्धरणों को भी निर्देशित किया है। लेखकों, खिलाड़ियों, भगवान महावीर, सिकंदर आचार्य महाप्रज्ञ और उन चिंतकों के विचारों का सारांश और उनके कथन को भी अपनी पुस्तक में पूरी तरह से आत्मसात किया है ।
डॉ अमरनाथ अमर जी ने ‘परिदृश्य चिंतन के’ पुस्तक को सरल, सहज, उदात्त, अनुकरणीय समीचीन, प्रासंगिक और प्रेरक बताया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को निश्चित रूप से पाठ्यक्रम में सम्मिलित होना चाहिए क्योंकि यह प्रगति की, रोशनी की और जीवन को रोशन करने की कला सिखाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लेखिका ने जिस चिंतन की बात की है,उस चिंतन से हम ‘ स्व’ से ‘सर्व’ की ओर अग्रसर होते हैं।
डाक्टर मुकेश गम्भीर ने लेखिका और अपने पारिवारिक संबंध की चर्चा करते हुए कहा कि पुस्तक पढ़ने पर इस पुस्तक ने मुझे उद्वेलित कर दिया। यूनान के एक प्रसिद्ध कथन की चर्चा करते हुए उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि पुस्तक पढ़ने के बाद बच्चे में निश्चित रूप से अद्वितीय बनने की शक्ति आ जाएगी। उनका कहना था कि लेखिका के लेखन में उनका अनुभव टपकता है। लेखिका ने अपनी पुस्तक में विद्यार्थी काल के अनुभव को, भिवानी के राजनैतिक वातावरण को, अध्यापन के अनुभवों को निचोड़ कर रख दिया है और पाठक उस अमृत का पान करके जागृत हो जाएगा। बुध और अष्टावक्र के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के निबंध उनके उपदेशों की तरह पाठक को जागृत और दृष्टा बनाएंगे। समाज में हर बीज के अंदर संभावना और क्षमता होती है ।बहुत से बीज पनप नहीं पाते और उसका कारण है कि इस प्रकार की पुस्तकें बहुत कम लोग लिखते हैं लेखिका को समाज उपयोगी पुस्तक लिखने के लिए बधाई देते हुए उन्होंने इस पुस्तक को वजूद से साक्षात्कार का मेल कराने वाली मधुशाला बताया।
अंत में साहित्य अकादमी के निदेशक पूरणमल गौड़ जी ने लेखिका डॉ मुक्ता जी को बधाई देते हुए उन्हें अपना प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने केवल पुस्तकों को ही जीवन में अपना मित्र बनाया। वे स्वेट मार्टिन की पुस्तकें पढ़ते थे और यदि उन्हें यह पुस्तक पहले ही मिल जाती तो पता नहीं वे क्या बन जाते। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस पुस्तक को पढ़ने से विद्यार्थी में जीवन मूल्य आएंगे और वे सजग होकर उन्नत शिखर पर पहुंचेंगे। उन्होंने इसके साथ ही यह भी आशा व्यक्त की कि लेखिका भविष्य में देश भक्ति और राष्ट्र भाव को जागृत करने वाले भावों पर भी एक पुस्तक इसी प्रकार की लिखे।
डाक्टर मुक्ता ने सभी समीक्षकों को सम्मानित करते हुए अतिथियों और सभी उपस्थित साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया।
इस लोकार्पण समारोह में साहित्य जगत की अनेक लोक प्रसिद्ध विभूतियाँ-त्रिलोक कौशिक जी,शशांक गौड़ जी,अमरलाल अमर जी,नरेन्द्र लाल जी,कृष्णा जैमिनी जी,कृष्ण लता यादव जी,डाॅक्टर स्मिता मिश्रा जी,परिणीता सिन्हा जी,मुक्ता मिश्रा ,शकुंतला मित्तल और अन्य अनेक साहित्यिक विभूतियों ने अपनी उपस्थिति से उस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।
– प्रस्तुति – सुश्री शकुंतला मित्तल
☆ पुस्तक समीक्षा ☆ परिदृश्य चिन्तन के ☆ सुश्री सुरेखा शर्मा ☆
पुस्तक –परिदृश्य चिन्तन के
लेखिका-डॉ मुक्ता
पृष्ठ संख्या –152
प्रथम संस्करण- 2019
मूल्य –250/-
प्रकाशक –दीपज्योति ग्रुप ऑफ पब्लिकेशन, महावीर मार्ग, अलवर-301001.
☆ जीवन को सकारात्मकता ऊर्जा से परिपूर्ण करने वाला संग्रह ☆
सुश्री सुरेखा शर्मा
‘देखना है ग़र मेरी उड़ान को
तो ऊँचा कर दो आसमान को।’
इस विचारधारा के साथ लेखिका की लेखनी चली है एक चिंतक के रूप में।उनका मानना है कि इन्सान चिन्ता की जगह चिन्तन को यदि जीवन का मूलमंत्र स्वीकार कर ले, तो उसके जीवन में दु:ख, अवसाद व असफलता दस्तक दे ही नहीं सकते। ज़िन्दगी के दांव-पेंचों को बहुत निकटता से देखते हुए, समझते हुए, चिन्तन करते हुए लेखिका ने अपनी लेखनी के माध्यम से महापुरुषों के वचनों को, सूक्तियों को, कहावतों व अनुभवों को आधार बनाकर ‘परिदृश्य चिन्तन के’ रूप में पुस्तक रूप में लिपिबद्ध किया है। एक-एक विषय जीवन का पाठ पढ़ाता है और जीवन में उतारने वाला अर्थात् अनुकरणीय है…और जीवन को संवारने व सार्थक करने वाला है। प्रत्येक विषय समस्या का समाधान देेेकर, सहज छाप छोड़ जाता है।
‘चिन्ता नहीं चिन्तन’ उनके प्रथम निबंध-संग्रह के विषय में पद्मभूषण श्रद्धेय कवि नीरज जी के मतानुसार ‘यह पुस्तक हर घर में होनी चाहिए।’ उनके ही शब्दों मे—“आपकी कृति के एक-एक पृष्ठ को बड़े ध्यान से पढ़ा। इसका हर आलेख सही जीवन-निर्माण मेें सहायक सिद्ध हो सकता है । हर माता-पिता को इसे स्वयं पढ़कर अपने बच्चों को भी पढ़वानी चाहिए। जो इसका पठन करेेेगा, उसके जीवन में एक नई क्रांंति घटित होगी। यह पुुुस्तक समाज-हित में मील का पत्थर साबित होगी।”
इसी प्रकार अखिल भारतीय हिन्दी सेवी संस्थान, इलाहाबाद से आदरणीय श्री राजकुमार शर्मा जी लिखते हैं—“प्रेरणास्पद आलेखों से परिपूर्ण इस पुस्तक को प्रारम्भ से अंत तक, रात के तीन बजे तक पढ़ता चला गया । न नींद आँखों में उतरी, न ही झपकी आई और न ही कुर्सी से उठकर कमर सीधी की। एक-एक शब्द मनो-मस्तिष्क में गहरे में पैठता चला गया ।” आप स्वयं अनुमान लगा सकते है कि उनका प्रथम निबंध-संग्रह ही नहीं, द्वितीय संग्रह भी हमारे जीवन के लिए बहुत बड़ी धरोहर होगा।” डाक्टर सुभाष रस्तोगी जी ने भी उस संग्रह को “जीवन के उच्चाशयों का रेखांकन “ संज्ञा से परिभाषित किया है।
इसी कड़ी में डा• रामेश्वर प्रसाद गुप्त (प्राचार्य ) दतिया (म•प्र•) से ने दोहों के माध्यम से पुस्तक की बहुत ही सहज ,सरल व सार्थक समीक्षा की है।बानगी देखिए —
“जीवन में आए नहीं,बाधाएँ और संत्रास।
कर्मशील बनकर रहो कभी न रहो उदास।।”
——-
“मुक्ता जी की सुकृति में ,मुक्ति हेतु विचार।
ज्ञान भक्ति सत्कर्म का चिन्तन है साकार।।”
परिदृश्य चिंतन के’ कोई कहानी संग्रह, लघुकथा संग्रह, काव्य या गीत संग्रह की तरह, मनोरंजन करने वाला संग्रह नहीं है, अपितु एक ऐसा अनूठा संग्रह है, जो ज़िंदगी की राह पर चलते हुए पग-पग पर मिलने वाले, कठिन से कठिन प्रश्नों का उपयुक्त हल ढूंढने की सामर्थ्य रख, जीवन की राह को आसान करने वाला है। इसीलिए मैथिली शरण गुप्त जी ने कहा भी है–
“केवल मनोरंजन ही कवि का न कर्म होना चाहिए।
उस में उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।।”
महिला महाविद्यालय में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, पूर्व सदस्य केंद्रीय साहित्य अकादमी, साहित्य-सृजन में निरंतर रत, संवेदनाओं की गंभीरता संजोए… एक संवेदनशील सर्जक व गम्भीर चिंतक…माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित, बहुमुखी प्रतिभा की धनी आदरणीय डाॅ मुक्ता बधाई की पात्र हैं। सो! मैं उनका अभिवादन-अभिनंदन व उनके प्रति आभार व्यक्त करती हूँ… ‘परिदृश्य चिंतन के’ जैसी अद्भुत, अद्वितीय व समजोपयोगी कृति के लिए…जो डॉ मुक्ता का… सकारात्मक ऊर्जा से लबरेज़ दूसरा निबंध-संग्रह है। लेखिका एक ऐसी साहित्यकार हैं, जिन्हें पढ़कर कथा सम्राट् मुंशी प्रेमचंद के शब्द स्मृति-पटल पर स्वतः ही उभर आते हैं। उनके शब्दों में –‘साहित्यकार या कलाकार स्वभावतः प्रगतिशील होता है। उसे अपने अंदर भी और बाहर भी एक कमी-सी प्रतीत होती है। इसी कमी को पूरा करने के लिए उसकी आत्मा बेचैन रहती है। इसलिए वे कहते हैं — ‘हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो, जो हममें गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाए नहीं, क्योंकि अब और ज़्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।’ इस प्रकार ‘परिदृश्य चिंतन के ‘ निबंध-संग्रह उपरोक्त कसौटी पर खरा उतरता है ।
‘यदि सपने सच न हों, तो रास्ते बदलो, सिद्धांत नहीं,
क्योंकि पेड़ हमेशा पत्तियाँ बदलते हैं, जड़़ें नहीं…’
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखिका ने आज की युवा- पीढ़ी को सचेत किया है…विशेषकर उन युवकों को, जो सत्य व समय की शक्ति को अनदेखा कर निरंतर पतन की राह पर अग्रसर हो रहे हैं। वे भूल जाते है कि समय बहुत बलवान् होता है, जिसे बदलते पल भर भी नहीं लगता।कई बार वक्त राह में कांटे बिछा देता है, तो कई बार कंटक भरी राह को फूलों से आच्छादित कर देता है– यह प्रेरित करने वाली पंक्तियाँ हैं, ‘रास्ते बदलो, सिद्धांत नहीं’ निबंध की।
जीवन यदि एक जैसा चलता रहे, तो भी नीरसता आ जाती है । ‘एक बार एक पक्षी डाली पर सुस्त बैठा था। कुछ देर बाद वह दूसरे वृक्ष की डाली पर जा बैठा और इस प्रकार कूदता-फाँदता बहुत दूर चला गया। इसके बाद उसे मधुर वाणी सुनाई देने लगी। उसके मन में विचार आया कि कुछ देर पहले वह एकरसता की ऊब से हताश व निराश था और जैसे ही उसने उड़ान भरी… तभी से ही उसके अन्तर्मन का कुहासा छंटने लगा। प्रकृति के परिवेश से तालमेल कर वह चहकने लगा है, मानो प्रकृति भी उसके साथ नृत्य करने लगी हो।’ – ये पंक्तियां हैं निबंध ‘परिवर्तन…आनन्द का पर्याय’ की, जिसमें सर्वोत्तम-सर्वश्रेष्ठ संदेश छिपा है। प्रकृति में परिवर्तन के माध्यम से लेखिका ने मानव जाति को प्रेरित किया है कि मानव कैसे अपना जीवन आनन्दमय बना सकते है!
निबंध व्यक्ति के चिंतन एवं भावात्मक अनुभूति का लिखित रूप होता है। निबंध आकार में लघु, सुसंगत एवं आत्मसमर्पण रचना होती है।निबंध चाहे वर्णना- त्मक हो, विचारात्मक या भावात्मक हो… लेखक उसमें अपना हृदय खोलकर रख देता है। वह अपनी अनुभूति या चिंतन को निस्संकोच पाठक के समक्ष प्रस्तुत कर देता है। लेखक और पाठक के बीच संबंध स्थापित करने वाली निबंध-विधा सबसे सरल व प्रशस्त सेतु होती है। निबंधकार उपदेशक के रूप में स्वयं को नहीं देखता… वह तो केवल अपने विचार व भावनाएँ उन्मुक्त भाव से निबंध में व्यक्त करता है। निबंध पढ़ने से पारस्परिक संवाद- वार्तालाप व बातचीत-सा आनंद मिलता है और एक सौजन्य व सौहार्दपूर्ण वातावरण का सृजन होता है। इन सभी खूबियों से परिपूर्ण हैं, भावात्मक शैली पर आधारित निबंध-संग्रह ‘परिदृश्य चिन्तन के’ निबंध।
लेखिका, कवयित्री व कहानीकार होने के साथ-साथ वे श्रेष्ठ निबंधकार भी हैं। उपरोक्त संग्रह में चालीस निबंध संग्रहित हैं, जो जीवन के विभिन्न रूपों से बखूबी परिचय करवाते हैं। निबंधों में काव्यात्मक आस्वाद के साथ-साथ गद्यात्मक कसाव भी परिलक्षित होता है। साहित्यिक, धार्मिक, सामाजिक, आध्यात्मिक निबंध भी भावात्मक हैं, जो उनके स्वस्थ जीवन-दर्शन को उद्घाटित करने में सफल सिद्ध हुए हैं। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से हिन्दी निबंध को कथ्यात्मक एवं लालित्यपूर्ण शैली से मंडित करके विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है।’
बोल-अबोल’ निबंध में हेलन कीलर के कथन की सार्थकता को सिद्ध करते हुए लिखा है-‘ दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ें न देखी जा सकती हैं, न ही छुईं…उन्हें बस दिल से महसूस किया जा सकता है’ सो! यह कथन अत्यंत सत्य व सार्थक है। सृष्टि का रचयिता परमात्मा व आत्मा दर्शनीय नहीं है, परंतु उनकी सत्ता को अनुभव किया जा सकता है, क्योंकि यही तत्व जीव जगत् का आधार है। इसी प्रकार इन्सान के बोल ही समाज में उसकी स्वीकार्यता- अस्वीकार्यता को निर्धारित करते हैं। रहीम जी का यह दोहा इस भाव को प्रकट करता है—
‘रहिमन जिह्वा बावरी,कर गई सरग पाताल
आपुहिं तो भीतर गई, जूती खात कपाल’
अर्थात् समय व सीमा का ख्याल रख, सोच-समझ कर बोलने की सलाह दी गयी है, इस निबंध में। ‘बोल-अबोल’ निबंध वास्तव में विचारात्मक होने के साथ-साथ प्रेरणास्पद भी है। अहं का त्याग कर, संयम व मौन रहकर, किस प्रकार संस्कृति व संस्कारों की रक्षा की जाए… यह संदेश निहित है, इस निबंध में।
‘कर्तव्य-परायणता’, ‘संयम बनाम ध्यान’ , ‘धैर्य, धर्म, विवेक’, ‘सत्संगति-सर्वश्रेष्ठ पूंजी’,’जैसी सोच वैसी क़ायनात’ ऐसे अनेक विषयों पर लेखिका ने अपनी लेखनी चलाई है । ये सामाजिक निबंध होने के साथ- साथ वैचारिक भी हैं, जिनमें लेखिका ने समाज और व्यक्ति के संबंधों का विश्लेषण कर, विकास की प्रक्रिया में सामाजिक ढांचे के बदलते हुए स्वरूप व वर्तमान परिस्थतियों में उनकी उपयोगिता-उपादेयता आदि को सिद्ध किया है। समाजिक चिंतन के संदर्भ में एक ओर नए संदर्भों में अतीत की व्याख्या का प्रयत्न है और दूसरी ओर वैज्ञानिक व प्रगतिशील सोच का उन्मेष है, जिसमें लेखिका के अंतर्मन की अत्यंत अगाध आस्था और विश्वास की झलक है। वास्तव में परमात्मा से आत्मा के मिलन की प्रक्रिया ध्यान है और आज के परिवेश में व्याप्त चिंता, तनाव, अशांति, असंतुलन, आक्रोश, ईर्ष्या आदि की लकीरों को मिटाने तथा भौतिकतावादी मनोवृत्ति के तमस को आलोक में बदलने का सरल एवं सहज उपक्रम है। आज पूरी मानव जाति अवसाद रूपी नौका में सवार होकर, ज़िंदगी का सफ़र तय कर रही है । ऐसे में ‘परिदृश्य चिन्तन के ‘ निबंध,ध्यान- समाधि के प्रेरक रूप में कार्य करने में सक्षम हैं, सिद्ध-हस्त हैं।
संघर्ष करने वाले व्यक्ति को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। उसे सफलता प्राप्त करने के लिए गलत राहों पर चलने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। यह संदेश मिलता है, इस संग्रह के निबंध “संघर्ष… सर्वोत्तम जीवन शैली ” में लेखिका के विचार द्रष्टव्य हैं… ‘जीवन अविराम चलने का नाम है, राह में आने वाली दुश्वारियों के सम्मुख घुटने टेक देना, वास्तव में मृत्यु है। सो! संघर्ष ही जीवन है। संग +हर्ष अर्थात् खुशी से हर परिस्थिति को स्वीकारना और सुख- दुःख में सम स्थिति में रहना। इस प्रकार सभी निबंध-आलेख प्रेरक एवं महत्वपूर्ण हैं, जो ‘जीवन कैसे जीया जाए’ का पाठ पढ़ाते हैं। ऐसे विचारोत्तेजक आलेख लिखना, कहानी व कविता लिखने के समान सरल नहीं है, अत्यंत दुष्कर कार्य है, जिसमें जीवन के अनुभव तो हैं ही, रचनात्मक अध्ययन व वर्षों का पठन-पाठन भी निहित है, जिस आईने में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट रूप में प्रतिबिम्बित व परिलक्षित है।
इस संग्रह के समस्त निबंध पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि एक प्रबुद्ध साहित्यकार के समक्ष, जो भी प्रश्न आए….चाहे वे सामाजिक ,आध्यात्मिक, वैचारिक , मानसिक व दैनिक जीवन से संबंधित थे, सबका उपयुक्त समाधान-हल सूक्तियों, कहावतों व दोहों के माध्यम से, निरपेक्ष भाव से चिन्तन-मनन कर, अपनी सामर्थ्य-शक्ति व विवेक से जुटाने का प्रयास किया गया है। इन आलेखों में लेखिका ने अपनी सूक्ष्म व पैनी दृष्टि के साथ-साथ गंभीर विवेचन शक्ति का परिचय दिया है । ‘परिदृश्य चिन्तन के’ संग्रह का प्रत्येक निबंध अपनी आभा पृष्ठ -दर -पृष्ठ हमारे सम्मुख उलीचता-विकीर्ण करता हुआ, मनो-मस्तिष्क को आंदोलित कर, गहरे में पैठता चला जाता है। निबंधों में भाव-बोध की स्पष्टता व सरलता ने उसे उभारा है और भाषायी गरिमा ने धार दी है, जिन्हें पढ़कर पाठक एक ओर वर्तमान की पीड़ा, घुटन और जीवन के प्रति उदासीनता, असंतुष्टता व असंतुलन के बीच फैले अंधकार से मुक्त होगा, वहीं दूसरी ओर यह संग्रह जीवन के प्रति सार्थकता के बीज भी अंकुरित करेगा।
किसी भी व्यक्ति को उसके समस्त परिवेश में जानने का पूर्ण और सर्वोच्च माध्यम होता है…उसके रचनात्मक लेखन का पठन-पाठन। इस दृष्टि से ‘परिदृश्य चिन्तन के’ निबंध डाक्टर मुक्ता के व्यक्तित्व के खुले पृष्ठ हैं, जिनका पठन व चिंतन-मनन कर, हम अपने जीवन को सकारात्मक ऊर्जा के साथ, शाश्वत आनंद भी प्राप्त कर सकते हैं। इस संग्रह को विद्यालयों व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में स्थान उपलब्ध हो…ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।
हिन्दी साहित्य जगत् को समृद्ध करने वाली आदरणीया मुक्ता जी स्वस्थ एवं दीर्घायु हों और साहित्य साधना-रत रहें, यही ईश्वर से प्रार्थना है। इस संग्रह को हिन्दी साहित्य जगत् खुले हृदय से स्वीकार कर, लाभान्वित होगा। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ लेखिका को पुनः बधाई व शुभाशीष।
सुश्री सुरेखा शर्मा(साहित्यकार)
सलाहकार सदस्या, हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी।
पूर्व हिन्दी सलाहकार सदस्या, नीति आयोग (भारत सरकार )
# 498/9-ए, सेक्टर द्वितीय तल, नजदीक ई•एस•आई• अस्पताल, गुरुग्राम…122001.
मो•नं• 9810715876