हिन्दी साहित्य – ☆ लघुकथा ☆ सब्जी मेकर ☆ – डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
(डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी जी लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, गीत, कहानियाँ, बालकथा, बोधकथा, लेख, पत्र आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. आपकी रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. हम अपेक्षा करते हैं कि हमारे पाठकों को आपकी उत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर पढ़ने को मिलती रहेंगी. आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर लघुकथा “सब्जी मेकर ”.)
☆ लघुकथा – सब्जी मेकर ☆
इस दीपावली वह पहली बार अकेली खाना बना रही थी। सब्ज़ी बिगड़ जाने के डर से मध्यम आंच पर कड़ाही में रखे तेल की गर्माहट के साथ उसके हृदय की गति भी बढ रही थी। उसी समय मिक्सर-ग्राइंडर जैसी आवाज़ निकालते हुए मिनी स्कूटर पर सवार उसके छोटे भाई ने रसोई में आकर उसकी तंद्रा भंग की। वह उसे देखकर नाक-मुंह सिकोड़कर चिल्लाया, “ममा… दीदी बना रही है… मैं नहीं खाऊंगा आज खाना!”
सुनते ही वह खीज गयी और तीखे स्वर में बोली, “चुप कर पोल्यूशन मेकर, शाम को पूरे घर में पटाखों का धुँआ करेगा…”
उसकी बात पूरी सुनने से पहले ही भाई स्कूटर दौड़ाता रसोई से बाहर चला गया और बाहर बैठी माँ का स्वर अंदर आया, “दीदी को परेशान मत कर, पापा आने वाले हैं, आते ही उन्हें खाना खिलाना है।”
लेकिन तब तक वही हो गया था जिसका उसे डर था, ध्यान बंटने से सब्ज़ी थोड़ी जल गयी थी। घबराहट के मारे उसके हाथ में पकड़ा हुई मिर्ची का डिब्बा भी सब्ज़ी में गिर गया। वह और घबरा गयी, उसकी आँखों से आँसूं बहते हुए एक के ऊपर एक अतिक्रमण करने लगे और वह सिर पर हाथ रखकर बैठ गयी।
उसी मुद्रा में कुछ देर बैठे रहने के बाद उसने देखा कि खिड़की के बाहर खड़ा उसका भाई उसे देखकर मुंह बना रहा था। वह उठी और खिड़की बंद करने लगी, लेकिन उसके भाई ने एक पैकेट उसके सामने कर दिया। उसने चौंक कर पूछा, “क्या है?”
भाई धीरे से बोला, “पनीर की सब्ज़ी है, सामने के होटल से लाया हूँ।”
उसने हैरानी से पूछा, “क्यूँ लाया? रूपये कहाँ से आये?”
भाई ने उत्तर दिया, “क्रैकर्स के रुपयों से… थोड़ा पोल्यूशन कम करूंगा… और क्यूँ लाया!”
अंतिम तीन शब्दों पर जोर देते हुए वह हँसने लगा।
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
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