श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत जी का पुनः  ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही आप साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, माहिया, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं।

आपका  साहित्य जमीन से जुड़ा है। इस परिपेक्ष्य में  ई-अभिव्यक्ति में  ससम्मान आपकी रचनाएँ  ‘भूमि’ उपनाम से  प्रकाशित की जा रही हैं।

ब  हमारे प्रबुद्ध पाठक प्रत्येक बुधवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य”  शीर्षक से  श्रीमती कृष्णा जी का साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । आज प्रस्तुत है इस  कड़ी में आपकी एक लघुकथा “जिसकी लाठी उसकी भैंस”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य ☆

☆ लघुकथा – जिसकी लाठी उसकी भैंस ☆ 

 

“चमकूँ कल दस बोरे धान रखने की बात करी थी क्यों नहीं लाया रे..”

“मालिक बच्चे भूख से परेशान हैं उनका पेट भरने का इन्तजाम कर लूँ ….मालिक…. फिर धान लाता हूँ.”

जमींदार की जमींदारी कोई पचास बरसों से फल फूल रही थी…

चमकूँ किसी से कैसे कहे कि मालिक जो कर रहे हैं सरासर गलत है बच्चों  के पेट पर लात मार कर इनका पूरा कर रहा हूँ. पर गरीबी. मजबूरी उसके पैरो को बाँधे खड़ी है.

अनाज का तीन हिस्सा उसने आत्मा पर चोट सहते हुए. कराहकर  बैलगाड़ी पर लादा और दुखी मन से बखरी की ओर चल पड़ा ..

दरवाजे पर पहुंचे इससे पहले उसके कानों में मानो किसी ने लावा उड़ेल दिया..जमींदार जोर जोर से दहाड़ रहे थे.  “मुन्शी जा तो जाकर चमकूँ के घर से आनाज भर भर कर उठा ला. कोई बीच में बोले तो छोड़ना मत अगर चमकूँ हो तो भी..छोड़ना मत किसी को भी.”

बाहर चमकूँ के हाथ पाँव डर के मारे फूल रहे थे. उसने बाहर से ही कहा….”मालिक आप काहे तकलीफ करते हैं मै तो खूद ही ले आया….”

चमकूँ अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा था …और उसके मुंह से निकला – “चल चमकूँ आज जिसकी लाठी उसी की भैंस का रिवाज है जाने कब तक चलेगा.”

और वह धान के तीन हिस्से मालगुजार को सौंप आया.

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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Dileep Bhatia

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