हेमन्त बावनकर
(माँ सरस्वती तथा आदरणीय गुरुजनों के आशीर्वाद से “साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति” लिखने का साहस/प्रयास कर रहा हूँ। अब स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। इस आशा के साथ ……
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अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी एक रचना “मन के कागज़ी नाव पर सवार …. शब्द”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति #5 ☆
☆ मन के कागज़ी नाव पर सवार …. शब्द ☆
पानी की फुहार
शीतल बयार
बादलों के बीच से झाँकता
धूप का टुकड़ा
मीलों दूर
परदेस में
फिसलता है
पुराने शहर की
पुरानी इमारतों पर
पुराने किलों-महलों पर
नदी की सतह पर
और झील पर
हर दोपहर
जहां-जहां तक
जाती है नज़र।
और फिर,
अचानक
शब्द बहने लगते हैं,
मन के कागज़ी नाव पर सवार
काली सड़कनुमा नदी पर
दूर तक
मोड़ पर
ढलान पर
और
जो खो जाती है
झील तक
नदी तक
और
पुराने शहर की
गलियों तक।
और फिर
एकाएक बिखर जाती है
मिट्टी की सौंधी खूशबू
अपने वतन की
पूरी फिज़ा में
सारे जहां में ।
शब्दों की फुहार
शब्दों की बयार
भिगोने लगती है
मन के कागज़ी नाव पर सवार
शब्दों को
अन्तर्मन को
नेत्रों को
और
सुदूर पहाड़ की ढलान पर
काली नदीनुमा सड़क के किनारे बसे
मकानों की छतों को
और
मकानों को
जहां रहता है
मेरे ह्रदय का टुकड़ा
धूप के टुकड़े की
छाँव तले ।
© हेमन्त बावनकर
बेम्बर्ग 27 मई 2014
बहुत शानदार
धन्यवाद्
धन्यवाद्
वाह ऽऽऽ क्या बात है ।
Manbhawan sundar prakrati chitran. Mann ki aankho ki manoram Yatra.