श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर सामयिक व्यंग्य रचना “चलाचल- चलाचल”। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 4☆
☆ चलाचल- चलाचल☆
बड़ा बढ़िया समय चल रहा है । पहले कहते थे कि दिल्ली दूर है पर अब तो बिल्कुल पास बल्कि यूँ कहें कि अपना हमसाया बन कर सबके दिलों दिमाग में रच बस गयी है ; तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । सबकी नज़र दिल्ली के चुनाव पर ऐसे लगी हुयी है मानो वे ही सत्ता परिवर्तन के असली मानिंदे हैं ।
इधर शाहीन बाग चर्चा में है तो दूसरी ओर लगे रहो मुन्ना भाई की तर्ज पर कार्यों का लेखा- जोखा फेसबुक में प्रचार – प्रसार करता दिखायी दे रहा है । वोटर के मन में क्या है ये तो राम ही जाने पर देशवासी अपनी भावनात्मक समीक्षा लगभग हर पोस्ट पर कमेंट के रूप में अवश्य करते दिख रहे हैं । अच्छा ही है इस बहाने लोगों के विचार तो पता चल रहें हैं । देशभक्ति का जज़्बा किसी न किसी बहाने सबके दिलों में जगना ही चाहिए क्योंकि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि न गरीयसी ।
मजे की बात तो ये है कि लोग आजकल कहावतों और मुहावरों पर ज्यादा ही बात करते दिख रहे हैं । और हों भी क्यों न यही कहावते, मुहावरे ही तो गागर में सागर भरते हुए कम शब्दों से जन मानस तक पहुँचने की गहरी पैठ रखते हैं । बघेली बोली में एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है-
सूपा हँसय ता हँसय या चलनी काहे का हँसय जेखे बत्तीस ठे छेदा आय ।
बस यही दौर चल रहा है एक दूसरे पर आरोप – प्रत्यारोप का एक पक्ष सूपे की भाँति कार्य कर रहा है तो दूसरा चलनी की तरह । अब तो हद ही हो गयी लोग आजकल विचारों का जामा बदलते ही जा रहें , कथनी करनी में भेद तो पहले से ही था अब तो ये भी कहे जा रहे हैं हम आज की युवा पीढ़ी के लिखने- पढ़ने वाले हैं सो कबीर के दोहे
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब ।
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब्ब ।।
को भी बदलने का माद्दा रखते हैं और पूरी ताकत से कहते हैं –
आज करे सो काल कर, काल करे सो परसो ।
फिकर नाट तुम करना यारों, जीना हमको बरसो ।।
वक्त का क्या है चलता ही रहेगा बस जिंदगी आराम से गुजरनी चाहिए । चरैवेति – चरैवेति कहते हुए लक्ष्य बनाइये पूरे हों तो अच्छी बात है अन्यथा अंगूर खट्टे हैं कह के निकल लीजिए पतली गली से । फिर कोई न कोई साध्य और साधन ढूंढ कर चलते- फिरते रहें नए – नए विचारों के साथ ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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